श्रीरामकृष्ण लीलामृत [भाग-२] | Shreeramkrishna Leelamrit [Bhag-2]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ से बोली-“ बाबू | तेरे यहां मेरे लिये किसी वस्तु की कमी नहीं है। यदि किसी बत्तु की कभी जरुरत होगी ते में तुझसे मौँग लूंगी, तब तो ठीक होगा न? ऐसा कहते हुए चन्द्रादेवी ने अपना सन्‍्दूक खोलकर दिखा दिया और, वह बोली, “ यह देखो, मेरे पास भौ तक इतने कपडे चये हुए हैं और यहां खान पीने की ते के चिन्ता ही नहीं हैः उसका पूरी प्रबन्ध तो तूने पहले से ही कर रखा है और अब तक तू कर ही रहा है; अब भला इतने पर भी ऐसी कौन सी कु है जिसे में तुकसे मॉँगूं ! ” पर मथुरवावू ने किसी तरह पीछा नहीं छोड़ा। वे तो “ मुझसे भाज कुछ तो मोंगो ” ऐसा हठ ठानकर बैठ गये। बहुत कुछ विचार करने पर चन्द्रादेवी को अपनी जरूरत की एक वस्तु के स्मरण हो आया धीर वह बोली, “ अच्छा, बाबू ! तुम जब इस तरह देने पर ही तुले हो ते श्रमी मेरे पास तम्बाखू नहीं है, इसलिये चार पैसे की আন্না ला दो ! ” विषयी भधुरानाथ की आँखों में ग्रेमाशु भर आये और वे उसे प्रणाम करते हुए बोले, « धन्य है! माता ऐसी न हो तो ऐसा अलौकिक पुत्र कैसे जन्म ले! ” इतना कहकर उन्होने चार पैसे की तम्बाखु मेगाकर चन्द्रांदेवी को दे दिया । भ्रीरामकुष्ण के वेदान्तसाधन प्रारम्भ करने के समय उनके चचेरे भाई हलधारी श्र .राधागोविन्द्‌ जी के पजारी के पद पर नियुक्त थे । उमर मेँ वेदे होने श्र श्रीमद्भागवत भआदि शाज्लीय भ्रन्थों का कुछ अभ्यास होने के कारण उन्हें कुछ अमिसान या अहंकार था जिससे वे श्रीरामझृष्ण की आध्यातिक अवस्था को मस्तिप्फ-विकार कहां करते थे; इस उक्ति को सुनकर श्रीरामहृष्ण के मन में संशय उत्पन्न होता था और इस संशय के निवारण के “लिये वे चारम्बार किस तरह श्री जगदम्बा की शरण में जाया करते थे और उन दोनों में इस विषय के सम्बन्ध मे सदा किस प्रकार विवाद चला करता था, इत्यादि सव वृत्तान्त दम पहिले केह आये हैं। मधुरभावसाधन के समय श्रीरामक्ृष्ण के स्रीवेष आदि को देखकर तो उन्हें पूरी निश्चय हो गया कि श्रीरामकृष्ण अवश्य ही पायल हो गये हैं। श्रीराम- ' कृष्ण के सुख से यद खना है कि वेदान्तसाधन के समय हलधारी दरिरोशवर म थे और उनका तथा श्री तोतापुरी का अध्यात्म विषय पर कम्ती २ चाद्विवादं हुआ करता था। एक बार इन दोनों में इसी तरह अध्यात्मरामायण विषयक विवाद




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