मज़दूरी | Majduri

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Majduri by ओमप्रकाश - Omprakashलक्ष्मीनारायण नाथूराम - Lakshminarayan Nathuram

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लक्ष्मीनारायण नाथूराम - Lakshminarayan Nathuram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4 मजदूरी श्रमिक एक' प्रक्रार से स्वयं अपना नियोक्ता हाता है जौ अपनी वस्तु का निर्माण करता है कौर उसे बेचता भी है और इस प्रकार अपन मरण-पोपण तथा माल की लायन कै अतिरिक्त जा कुछ भी बचता है वह अतिरेक अथवा “शुद्ध आय” के रूप में स्वयं रख लेता है । 3 मजदूरी प्रणाली की विशेषताएं --यदि हम इन तीनो प्रशालियों की परस्पर और झ्ाघुतिक मजदूरी-प्रस्याली से तुलना करें तो ज्ञाव होगा कि इनको भिन्नता वन एक महत्ष्यपुर्ण पहलू श्रमिक को प्राप्त होने काली भाथिक स्वतन्त्रता की सीसा की श्रनमानता है जो स्वय उस सम्बन्ध पर निर्मर करती है नो अर्धिक सम्पत्ति से वह रखता है-अर्थाव्‌ क्या वह स्वय सम्पत्ति का स्वामी है या नही है अथवा वह কলম अपने स्वामी के अधीन सम्पत्ति का एक अग मात्र है। मनुष्यों के बीच -सामाजिक समूहो भ्रथवा वर्गों के बीचू--सम्वन्धो को प्रकृति सम्पत्ति-सम्बन्धी अधिकारो के स्वरूप से निर्धारित होती है ॥ दासवृत्ति श्रथवा कृषि-दामवृत्ति दोनों केर प्रन्त्ंत श्रमिक की स्वतन्त्रता कातुन द्वारा परित्तीमित होती है « दामवृत्ति के अन्तर्गत वह पूर्णो हूप से स्वामी के आधीन होता है और क्ृषि-दासवृत्ति के ग्रन्त्ग त उसकी स्वतन्नता वस्तुत स्वामी के लिए विशिष्ट सेवाओं को सम्पन्न करने के दायित्व द्वारा सक्ुचित हो जाती है । किन्तु मजदूरी-रणालो के प्रस्तगंत श्रमिक इस प्रकार के कानूनी बन्धनों के पाश मे बधा हुआ नहीं होता है। कानून की दृष्टि मे वह নয अपना स्वासी होता है । अपनी इच्छानुसार काम करने अथवा यदि वह चाहे तो एक स्वतन्न कारौगर्‌ की माति भ्रपना काम करने के लिए पूर्ण स्वतन्त होता है | चू कि पूजीपति जोकि एक वर्कशाप या फेंक्टरी अथवा खेत का स्वामी होता है ऐसी दशा में अनिवार्य श्रम प्राप्त करने का ग्रधिकार नहीं रखता--परम्परागत श्रधिकार के द्वारा अथवा खरीद के द्वारा--अ्रत वहूं बाजार माव वर मूल्य चुका कर श्रमिक के समय को कराए पर लन के लिये बाघ्य होता है तथा इस प्रकार दी जाने वाली मजदूरी एवं बचे जाने बाते तैयार माल से प्राप्त भूल्य के झस्तर के द्वारा अपना मुनाफा क्माता है ) इतिहास हमे बताता है कि श्रमिक की स्वाघीनता पर से समस्त कानूती प्रतिबन्धा वी समाप्ति मजदूरी प्रणाली के विकास के दिए प्राय एक प्रग्रिम शर्तें मानी गई है। 4 श्रार्थिफ स्वतन्त्रता--एक शताब्दी धुर्द के सस्थापक ग्रयंगास्‍्त्री देवत यह भी सत्ताप वर लेते थे कि जहा पूर्वकालीन प्रणालियों में अधित वाध्यत्ता घी उसक स्थान पर मजदूरी प्रणातरी स्वतस्तता पर अधिक बल दसी है। सजदरी-्प्ण्णाती गे इसे वियतिवादी ससार में यंब्रासम्मच अधिकाधिक स्वसन्त्रया प्राप्त वी । यह स्वतस्त कारीगर की प्रणाली के समान स्वाधोन होते के साथ-साथ उससे कही अधिक कार्य कुशल है । यह ठीक है कि मजदूरी पाते वाला श्रमिक अपने नियोक्ता के निरीक्षक ( प्रोदस्सीरर ) के अ्रनुगासन के अधीन फैक्टरी मे कुछ घंटे वार्य करने दे! लिये बाध्य




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