भारत में मूर्तिपूजा | Bharat Me Murtipuja

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Bharat Me Murtipuja by पंडित राजेंद्र - pt. Rajendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) 10/8৪৩-107501] 70 50৩ [01105 01 [71100132) (১0091 001 1807০ 510 1511210 51110) ০0001003000 ৮9 099 011, 7119 ০70 णि 81) 10199 ০0191900610. 7015180) 200. 2. [77000১02101 51111 15 1340 0115 080) 0605৩0 प्िण 8000178 °? मूति पजा क्रा श्रादि कारणः-- मूर्ति पूजा-प्रसार के, कालातर में चाद अनेक कारण वन गये हों, परन्तु मूल रूप में उसके आदि-कारण केवल दो दी हैं:-- (१) पूर्व महापुरुषों की चिरस्थायी स्मृति रखने री लालसा तथा (२) अदृश्य वस्तु को भी मूर्तिमान देखने की अज्ञ जन समुदाय की उक्तरठा । महापुरुषों और महात्माओं की झत्यु के पश्चात्‌ सबे साधारण सं उनके प्रति सम्मान ओर शद्धा के भाव जागृत रखने के लिए, जिससे वे उनके सद्गपदेशों एवं आदर्शों को विस्मृत न करदे, उनके चित्रों अयवा प्रतिमूर्तियों का बुद्धिमान लोगों ते निर्माण किया । ऊिन्‍्तु अज्ञान अथवा स्वाथंवश, कुछ शताछ्दिया व्यतीत छोले पर उनका जीवित पुरुपा कौ भांति पूजा सत्कार प्रचलित हो गया ओर यद सममा जाने लगा कि उनकी पूजा ओर उपासना मात्र से हमारे कष्ट दूर हो सकते हैं। महापुरुषों की वास्तविक पूजा उनके पग-चिन्हों पर चलना है, इस तत्व को भुला दिया गया। उनकी प्रतिसूर्तियों के सम्मुख खड़े होकर उनसे सहा- यता के लिये याचना करना अथवा जीवित की भति उनका स्नान, माजन, चन्दन-लेपन एवं भोजन, भेंट सत्कारादि निरर्थक परिक्रियाए' केवल मनुष्य समाज के अज्ञान और अन्ध विश्वास की परिचायक हैं। जैसा पूर्वं लिखा जा चुरा दै, बौद्ध मूर्ति पूजा का सूत्र-यात ठीक इस्ती प्रफार हुआ है। जैन, बौद्ध दोन. दो अप




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