समाधितन्त्र प्रवचन प्रथम भाग | Samadhi Tatra Pravachan Vol. १

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रोक है | , -> : झछुभवज्ञान बेभव-- भैया ! ऐसा दो इस आत्माके बारेमें पदिले च सात सत्र द्वारा ज्ञान हुआ । जो भ[चार्य.इसके रचयिता हैं वे .कह रहे हैं नि. सुमे शस भिन्न आत्माका ज्ञान जो सहज ज्ञायकंस्वरूप है वद सबसे प्रिन्न: हैं; इसका ज्ञान शास्त्रसे हुआ है अर्थात्‌ अनेक प्रकारके आगमोंके अभ्याससे इसमें आत्मतत्त्व सम्बधी बात पायी है? और फिर इतना दी नहीं) चिन्होंसे भी हमने पद्िचान ली कि यद्द भिन्‍न आत्मा. चेतन्यस्थरूप और आनन्‍्दका निधान है, युक्तियोसे मी जाना, श्चौर इतना ही नदीं, शूलुभवसे मी पष्टिचाने । घमं चीर धसी दत्तया करके जब यह अजुमवमें आ गया. कि पाप करनेसे दुःख होता, अज्ञानसे क्लेश दोना, किसीने बुरा विचारा तो मात्माको क्लेश होता, जव अन्तरी खोटी परिणत्तिसे क्लेश हुआ- इतना समम जेते है चीरं ज्र घमं करते-दै, शद्ध विचार रखते दै तो बहा शांति -नजर आती है | दूसरे जीव छुखी हों इस प्रकार जब सबके सुखी - होनेकी भावना रखते हैं तो वहां आनन्द अंकट होता है ।, तो ऐसे अजुभवसे भी इस आत्माकी,बात पद्दिचानी गयी है।: .. এ - ,. आचारयदेवकी करुणा- आंचार्यदेवको यह कद्दनेकी जरूरत क्यो पड़ीं कि हमने आगम भी सीखा,है और युक्तिय़ोसे भी.श्ञान किया है रौर अनुभवसे भी पदिचांना है । यह क्नेकी अवश्यकता भाचायदेवको इस लिए हुई कि वह ग्रन्थ लिख रहे हैं दूसरे जीवॉको.। वे दूसरे जीव অহ জী विश्वास करलें कि यद जो छुछ कहेंगे-बह प्रामाणिक वात कहेंगे । तो श्रोतावोके चित्तमें यह बात बैठानेके लिए कि आत्माके बारेमें जो बात कही जायगी वह यथार्थ दोगी । ये,ओता केसे जाने मेरे लिए य॒ आवश्यक हो गया: है कि उन्हें यद्द चताये कि हम अटपट बोलने वाले नदीं है किन्तु -शास्त्रका भी; अभ्यास किया हैः ओर युंक्तियां भी अनेक इस आत्माकी खोजमें सफल हुई. हैं ओर अनुभव-भी हमारा दै, इससे जो कुछ कंहूगा 'बहू, परम्पराके,.अजुस/र और यथार्थ कहूंगरा । ईंस कारण तुम सव ध्यान- -पूवंक इस.आत्माकी जात सुनो ।:ऐसे दी इस अन्थकी प्रस्तावनामे आचार्य -देव-श्ोतान्नोंके भ्रति.कदद হু ই, ৮. 2. ২ দি प्रस्तावना-और समाधन-- भव्थ इस श्लोकके बांद॑ शुरू होगा। यदद प्रस्तावनाका तीसरा छंद हैं, अतःकरणमे समाधान. तब ग्राप्त होता है जव - बस्तुविषयक़ यथाशे इल निकल आता है। किसी ब्म्तुक सम्बंवमें जब तक “उल्टा ज्ञान-चलता है तो समाधान नदी हो सकता .| सदी बात मालूम पड़े -तो समाधान दो जायगा ! यह आत्मा देदसे न्यारा है, इतनी बात जानने , के लिए वस्तुबोंका समस्त स्वरूप जानना पढ़ता है । यद ध्यानमें आये कि




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