एक बूँद - एक सागर - भाग 2 | Ek Boond Ek Sagar Bhag -2
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
375
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about समणी कुसुमप्रज्ञा - Samani Kusumpragya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संथन
आचार्यश्री तुलसी जैन इवेताम्बर- तेरापन्थी सम्प्रदाय के
एकमात्र आचाये हैं। वे अपने विशाल चतुविध संघ का संचालन
अत्यन्त कुशलतापूर्वेक करते हैं। उनके संघ का अनुशासन; दर्शन्नीय
है। उनके कर्मशील व्यक्तित्व ने संघस्थ साधु-साध्वियों में स्वाध्याय
और साहित्य-सुजन की सहज अभिरुचि जागृत की है। परिणामतः
साहित्य और संस्कृति की विविध विधाओं पर अभिनव साहित्य-सृजन-
की धारा निरन्तर प्रवाहित हो रही है । लाडनूं में जेन विश्व भारती
के रूप में जिस शोध-संस्थान की प्रतिष्ठा हुई है, वह आचार्य तुलसी
की सृजनात्मक प्रतिभा.का मूतं मन्दिर है। जेनः वाहमय का
पयंवेक्षण- करके उन्होने अणुत्रत के जिस- महान् जीवन-दशचेन को
नवीनः परिवेश मे सजाकर समाज को प्रदान किया है, वह विनाश-
कारी अणृबम का रचनात्मक विकल्प बनने कौ क्षमता रखता है ।
यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण न होगा कि आचार्य . तुलसी का
व्यक्तित्व बहुआयामी है। जब जैन समाज के चारो सम्प्रदायों ने दिल्ली
में भगवान् महावीर का २५०० वां निर्वाण महोत्सव सम्मिलितः रूपः
से मनाया था, उस अवसर पर हमने उन्हें निकटता से देखा और' परखा
था। उस आधार पर हम यह निःसंकोच कह सकते है' कि आचार्य
तुलसी एक भरोसेमन्द साथी और सहयोगी हो सकते है। उनके हृदय
में जैन समाज की एकता और जैन धर्म के प्रभाव-विस्तार की अदम्य
लालसा है ओर इसके लिये -युक्ति्ंगत बात को स्वीकार करने की
अद्भुत महानता भी है ! महान लक्षय के लिये उनमें अहंता की जडता
और ममता के आग्रह का विसजंन करने की अद्भुत क्षमता है ।
आचार्य तुलसी एक साधू पुरुष है। तेरापन्थ सम्प्रदाय की
संरचना और संवर्धन में उनकी सक्रिय और निर्णायक भुमिका रही
है। वे एक हैं, किन्तु उनके रूप अनेक हैं। वे अनुशास्त। है संघ के
आचार्य है, अनेक ग्रन्थों के लेखक हैं, प्रभावक वक्ता हैं, योग्य नेता
हैं। उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं में अनेक लेख लिखे है, अनेक भेंट-वार्ताएं
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