भीष्म साहनी के साहित्य में सामाजिक चेतना | Bhishm Sahni K Sahitya Mein Samajik Chetna

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : भीष्म साहनी के साहित्य में सामाजिक चेतना  - Bhishm Sahni K Sahitya Mein Samajik Chetna

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सुरेन्द्र नारायण - Sundar Narayan

Add Infomation AboutSundar Narayan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जनजातीय समाज - वन्यजाति या जनजाति को आदिम, आदिवासी, वनवासी, गिरीजन तथा अनुसूचित जनजाति आदि नामों से सम्बोधित किया हैं। इन्हें आदिवासी इसलिए कहा है कि वे भारत के प्राचीनतम निवासी हैं। भारत में द्रविड़ों के आने से पूर्व यहाँ ये लोग ही निवास करते थे। वेरियर एल्विन भी इन्हें आदिम जाति के नाम से पुकारते हैं। आपने लिखा है - “आदिवासी भारतवर्ष की वास्तविक स्वदेशी उपज हँ जिनकी उपस्थिति में प्रत्येक व्यक्ति विदेशी हे। ये वे प्राचीन लोग हैं जिनकी उपस्थिति में अधिकार और दावे हजारों वर्ष पुराने हैं। वे सबसे पहले यहाँ आए। आदिवासियों के मसीहा ठक्कर बापा और भारतीय संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य श्री जयपाल सिंह ने भी इन्हें आदिवासी के नाम से संबोधित किया। आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तू ने कहा था कि “मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, समाज से बाहर रहने वाला मनुष्य या तो देवता है, या पशु। 12115 25 500181 2111171981, 1 8 11181 00951701115 17 18 500691187 50189 18 [8 ता 8 500 0 8 06851. (^115{016) अरस्तू का यह कथन यह पूर्णतया सत्य है, क्योकि मनुष्य स्वभावतः तथा आवश्यकतावश समाज मेँ रहता है, दूसरे शब्दो मेँ सामाजिक जीवन नितान्त स्वाभाविक है। मनुष्य समाज में जन्म लेता है, समाज मे उसका पालन पोषण होता हे, समाज मेँ रहकर ही वह अपने व्यक्तित्व का विकास करता है तथा समाज मेँ ही उसकी मृत्यु होती है। एकांकी जीवन मनुष्य के लिए कठोर दण्ड है। मनुष्य के लिए समाज तथा सामाजिक जीवन उतना ही आवश्यक है जितना कि मछली के लिए पानी। मैकाइवर का यह कथन पूर्ण रूप से सत्य है “मनुष्य समाज में जन्म लेता है और समाज 11117 (11901৬21) को आवश्यकता उसमें | ই? 10211190011 17 90010 ्षा0 [16 11860 01116 500७५ 18 007 জা में मनुष्य समाज में जन्म लेता है, समाज में रहकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, अपने व्यक्तित्व का विकास करता है और समाज में ही चिरनिन्द्रा में सो जाता हैं। बच्चा जब जन्म लेता है, तब वह अपने माता-पिता पर आश्रित रहता हैं। यदि माता-पिता उसका पालन-पोषण उचित ढंग से न करें तो वह जीवित नहीं रह सकता। डॉ. बेनी प्रसाद ने ठीक ही लिखा है- “जब सहायता पर निर्भर रहता है। उसकी बच्चा पैदा होता है, तब वह कई वर्ष तक अपने माता-पिता की तिं उन्हीं के द्वारा होती हैं। इसप्रकार जन्म लेते ही मनुष्य की स्थिति दूसरों पर निर्भर मनुष्य बिना भोजन के भी नहीं रह सकता। उसके लिए स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना पढ़ता है, इसलिए यह कहावत सत्य है “ स्वास्थ्य ही सम्पत्ति है” 1168111 ¡ऽ 6211 मानव के विचार-शक्ति निःसन्देह उसके विकास में सहायक रही है, परन्तु साथ ही उसकी विशिष्ट




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now