कुमारपालचरित्र | Kumarpalcharitra

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Kumarpalcharitra  by श्री ललित विजय - Lalit Vijay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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হু तरह से अथ किए हैं। इस निमित्त इन्हें হহাবার্থা? की बहुविद्वत्तात॒ूचक उपाधि मिली थी। इन की कवित्व शक्ति बहुत अच्छी थी। जिन्हों ने इन की बनाई हुई “सुकतिसुक्तावली?-- जिस का अपर नाम सिंदूर प्रकर है-_का पाठ किया है वे इस बात को अच्छीतरह जा- नते हैँ। ये संस्कृत के समान प्राकृत भाषा के भी पूरे पारंगत थे। महाराज कुमारपाल दब के राज्यत्व काल में 'सुमतिनाथचरित्र' नामक एक बहुत बड़ा पंथ प्राकृत में लिखा है। इस “क्ुमारपाल चरित्र में भी बहुत भाग प्राकृत का ही है। विक्रम संवत्‌ १२४९ में इस ग्रंथ की समाप्रि हुई है । अथोत्त्‌ महाराज कुमारपाल की झुत्यु से ११ वषे बाद्‌ यह्‌ मंथ लिखा गया है। ग्रंथ बहुत बडा ই | शछोकसंख्या कोई इस की ९००० के छग॒भग होगी । २--मोहपराजयनाटक, यश्ञःपालमंत्रीकृत । सुप्रसिद्ध युरोपीय पंडित पीटरसन (1১:০2 1১96518070-) १ देखो निर्णयसागर श्रेस, बंबई, का छपा हुआ “काव्यमारा सप्तम गुच्छक!




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