रिष्ट समुच्चय | Risht Samuchchya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : रिष्ट समुच्चय  - Risht Samuchchya

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

दुर्गदेव - Durgdev

No Information available about दुर्गदेव - Durgdev

Add Infomation AboutDurgdev

पं नेमिचंद्र जैन - Pt. Nemichandra Jain

No Information available about पं नेमिचंद्र जैन - Pt. Nemichandra Jain

Add Infomation AboutPt. Nemichandra Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[स] 'वरग्पराके सभी आचय ग्रशित, ज्योतिष श्रादि लोकोपयोमी विषयों ॐ कषात्ता हष हैं। शतएव दु्गेदेव सी इन्हीं माधचचन्द्र की शिष्य परस्पर में हुए होंगे । दुर्गंदेव ने इस प्रस्थ की रचना लर्पीनिवाप राजा के राज्य में कुम्मनगर नामक पहाड़ी नगर के शांतिनाथ चेत्यालय में फी है। विशेषज्ञों क्ञा अनुमान है फि यह फुम्मनगर भस्तपुर के निकट कुम्हर, कुम्मेर अथवा कुम्मेरी के त|म से प्रसिद्ध स्थान ही है। महामहोध्याय स्व डा० गोरीशकर हीराचन्द भी दश्च घात को मानते हैं कि लच्मीनिवास कोई साधारण-खस्दार रहा होगा तथा कुस्मनगर भरतपुर के निकट वाला कुस्मेरी, कुस्मेर या कुम्हर ही है। क्‍योंकि इस प्रन्थ दी रचना शौरसैनी प्राकृत में हुई है, अतः यह स्थान भी शौरसेन देश के निकट ही, होना चाहिए। कुछ लोग ১০৬ इ फो मानते हैं, ०० उप्तका यह मानता ठीक नहीं जंचता है, यह गढ़ तो हुर्गेदेद के जीवन के वहुत पीछे बना है। ॥ कुस्म राणा द्वारा विनिर्मित मसिन्‍्दा फिले का कुम्भ विहार भी यह ही हो सकता है, क्योंकि इतिहास द्वारा इसकी पुर नहीं धोती है। अनतएय रिप्मुच्चय का रचना स्थान शौरसेन देश के भीतर भरतपुर के निकट आज का कुम्हर या कुस्सेर है। दुरैदेव के समय में यह नगर किसी ण्डो ॐ निकट वसां छुआ होगा, जहां आचाये ने शास्तिनाथ जिनालय में इसकी रचना की होगी। यह नगर. उल सप्रय रमणीक और भ्रब्य रहा होगा। किस्ती चेशावली में लद्मी निवास का ज्ञाम नहीं मिलता है, अतः हो सकता है कि वह एक छोटा सरदार जाट या जदन राजपूत रहा “होगा । यद स्मरण रखने लायक है कि भरतपुर के आधुनिक शसक भौ जाट हैं, जो कि अपने को मदनपाल का चंशज कहते है. । स मदनलाल को जद्न राजपूत दतलाता है, यह र्ना कै, জী ग्यारदर्दी शताब्दी में बयातरा के शासक थे, तृतीय ঘুস ই। এ হুট कुल्मकार জনে कै निकट वाला कुर्ह ही रिश्सपरुच्च॒य का रचनाकाल --६० की ২ উম নানান ३० वीं। गाया में बतावा में बताया +सवच्चर गसहसे बोलीणे शवयहीई सजुत्त । पावणइंकबार॒ति दि्रदम्मि ( य ) सूलरिक्खेमि ॥|




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now