भारतीय ज्योतिष का इतिहास | Bharatiya jyotisa ka itihasa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्रारम्भिक बातें ण उदयत हैं । दुक्तुल्यता--गणना में ऐसा सुधार करना कि उससे वह्दी परिणाम निकले जो वेध से प्राप्त होता है--आज के प्रायः सभी पंडितों को पाप-सा प्रतीत होता हूँ। वेघ की अवहेलना अभी इसकिए निभी जा रही हैं कि सुर्य-सिद्धा्त के गणित से निकले परिणाम और वेध में अभी घण्टे दो घण्टे से अधिक का अन्तर नहीं पड़ता और घण्टे दो घण्टे आगें था पीछे परणिमा बताने से साधारण मनुष्य साधारण अवसरों पर गछती पकड़ नहीं पाता ।. इसी से काम चला जा रहाहँ ।. ग्रहण के अवसरों पर अवश्य घष्टे भर की गछती सुगमता से पकड़ी जा सकती हैं परन्तु पंडितों ने चाहे बे कितने भी कट्टर प्राचीन मतावलम्बी हों ग्रहणों की गणना आधुनिक पाइचात्य रीतियों से करना स्त्रीकार कर छिया हूँ । अस्तु । चाहे आज का पंडित कुछ भी करे ऋग्वेद के समय के लोग साठ भर तक किसी भी प्रकार तीस दिन ही प्रति मास न मान सके होंगें। सम्भवतः कोई नियम रहा होगा ऐसे नियम बेदांग- ज्योतिष में दिये हैं और उनकी चर्चा नीचे की जायगी। परन्तु यदि कोई नियम न रहे होंगे तो कम-से-कम अपनी आँखों देखी पूर्णिमा के आधार पर उस काल के ज्योतिषी समय-समय पर एक-दो दिन छोड़ दिया करते रहे होंगे । वर्ष में कितने मास यह तो हुआ मास में दिनों की संख्या का हिसाब ।. यह भी प्रस्न अवश्य उठा होगा कि वर्ष में कितने मास होते हैं । यहाँ पर कठिनाई और अधिक पड़ी होगी । पूर्णिमा की तिथि वेब से निश्चित करने में एक दिन या अधिक से अधिक दो दिन की अशुद्धि हो सकती हैँ। इसलिए बारह या अधिक मासों में दिनों की संख्या शिनकर पड़ता बैंठाने पर कि. एक मास में कितने दिन होते हैं अधिक त्रुटि नहीं रह जाती हूँ । परन्तु यह पता लगाना कि वर्षाऋतु कब आरम्भ हुई या शरदऋतु कब आयी सरख नहीं है ।. पहला पानी किसी साल बहुत पहले किसी साल बहुत पीछे गिरता है। इसलिए वर्षाऋतु के आरम्भ को बेध से ऋतु को देख कर निदिचत करने में पत्र दिन की त्रुटि हो जाना साधारण-सी बात है ।. बहुत काल तक पता ही न चढ्ला होगा कि एक वर्ष में ठीक-ठीक कितने दिन होते हैं। आरम्भ में छोगों की यहीं धारणा रही होगी कि वर्ष में मासों की संख्या कोई पूर्ण संस्या होगी । बारह ही क्योंकि चन्दग्रहण का मध्य परणिमा पर और सूर्यग्रहण का मध्य अमावस्या पर ही हो सकता हैं ।




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