प्रसाद की नाट्य कला पाश्चात्य और भारतीय परंपरा | Prasad Ki Natya Kala Pashchatya Aur Bhartiya Parmpra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
269
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पाइचात्य औौर भारतीय नादय-परम्परा ] { २७
सुद्ान्व और मिश्चित तोन प्रकार के भाटक लिखे । दुखान्त नाटकों को कथा-वस्तु
राजवंश तथा अभिजात्य वर्ग से लो गई है। सुखान्त रचना मे इस नियम की उपेक्षा
की गयी है । दुखान्त नाटको के प्रमुख पात्र का सम्बन्ध राज-परिवार तथा उच्च वें
से रखने का अभिप्राय प्रभावोत्यादन में तौब्रता लागा था। सुखान्त नाढकों में
पृष्ठभूमि का चयन बडी कुद्छता से क्रिया गया है ।
सवे बड़े ही अप्कर्पक दृश्यों से युक्त समृद्ध परिदेश से कथानक का आरम्भ
होता है। 'नवयुवक और नवयुवतियों के प्रणय-तम्बन्ध मं पहल तो कठिनाई उत्पन्न
होती है फिर सुद्ध्ञ जावी है और अन्त से प्रेमियों का विद्वाह जाता है। मद्यपि
कयानक यथां ओवन से बिलकुल विलग नही है तव भी वह् कवित्व और कल्पना
के माध्यम से प्रेषित हुआ है ।'' अछार्डाइस तिकल भी इसी निष्कर्ष पर पहुचे हैं ।
उनका अभिमत है कि शेवसपियर के स्वच्छरदतावादी जगत का श्रमुख गुण यथार्थ
और कल्पना का समिश्रण है। (1फ%छ 13 005৩ ০2100139] 013917201501500
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सभौ मृखान्त नाटको भे भय, विपाद, सकट को छाया मडराती दिलाई
पढ़ती ইহ অগা ক্যা শিক পাক্কা ने काव्पात्मक उपकरणों द्वस प्रस्तुत
किया है। ब्न्वित्तित्रयी के उपेक्षा के कारण अर्थात् कार्य, स्थान और समय के
बन्घन की शिथिलूता के कारण कवि को पात्रों की मानश्िक स्थितियों के विभिन्न
स्तरों का उद्घाटन करने के लिए पूरा अवसर मिला है। इससे नाटककार को
चरित्र-चित्रण में पूरी सफलता मिली है। “प्राचीन नाठको में कया वस्तु ही प्रमुख
यौ, अव उमे गौण स्यान मिला | चरित्र-चित्रण को शास्त्रीयनाटकों मे गौण स्थान
प्राप्त था उसे आज प्रायमिक्रता प्राप्त हुई है। शेक्सपियर ने चरित्र-चित्रण को
साध्य तथा कया वस्तु को साधन के रूप मे स्वीकार किया है ४
स्वच्छचन्दयावादी नाठको के कथातक मे भी व्यापक्तता तथा विस्तार आया।
क्चा-बस्तु में प्रासगिक कथानक को स्थान प्राप्त हुआ तथा पात्री की सख्या मे वृद्धि
हुई पाझो मे विशेषकर नाथक के विरोधी तक्ष्वों को उत्कप की इस स्थिति तक
पहुंचा देना--जिससे सारा वातावरण पूरो तरह प्रभावित हो जाय, कथानक की
खखला टूटदी हुई प्रतीत हो, पर पुन्॒ उसमें सामजस्थ स्थापित कर उस कथा-
प्रवाह को गति धदान करके, नायक के चरित्र के किसो विशिष्ट ग्रुण या घर्मं को
प्रकट करते पर नाटककार का ध्यान केचित रहता था। अन्विति की रूढिको
१. डा० रामभवध द्विवेदी : 'अग्नेजी भाषा ओर साहित्य, पृष्ठ ८०
2, भिग्मवे एब्याऊ एग्ट८ 125
3০ মিসড 2 6৩৩০৫ पव [०2 एष्ट [के
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