कृष्ण काव्य का तुलनात्मक अध्ययन | Krishn Kavya Ka Tulnatmak Adhyayn

Krishn Kavya Ka Tulnatmak Adhyayn  by डोक्टर र० श० केलकर - Docter R. S. Kelkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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১১১৬, ५ साहित्य में बलि के पाताकनामन की घारणा से भी इसी मत की पुष्टि होती है क्योंकि गाताल का सम्बन्ध सूर्य के ही तीसरे क्रम से हो सकता है । ऋण्वेद में जहाँ विष्णु के परमपद का उल्लेख है वही उन्हें 'गिरिष्ठा” (भयंकर पर्वत पर रहने वाला) तथा 'कुचर:' (स्व॒वन्चता से विचरण करने वारा) कहा गया है ।* अगछे मंत्र में इन्ध तथा विष्णु दोनों को एक साथ अश्रवंचनीय बताया गया है जो पंत के शिखर पर हृश्यमान है । मैवडोनेल इसका जर्थ सेघ-शिखरों पर आलोकित सूर्य से करता है जो युक्त- संगत जान पड़ता है।* क्योकि अप्रवंच्नमीय तत्त्व प्रकाञ्न है, सत्य है, भत्तः वही अत्यकार का नाश कैरने बाछा तथा सर्वसाक्षी है बेद में विष्णु का सम्बन्ध गायो के साथ भी दिखायी पड़ता है ।३ विष्णु अजेय गोप है। दीघंतमा भोचथ्य ऋषि की अनुभूति है कि विष्णु के परमपद या उच्चतम छोक में “भूरिश्यंगा! (अनेक '्इंपोंवाली) तथा 'अयास:” (तितान्त चँंचछ) गायों का आवास है।४ “भूरि शंगा अयास:” गाएँ सूर्य की चंचछ किरणे हैं जो व्योम से नाना दिशाओं को उद्भासित करती रहती है तथा अनेक रंग वदलूती रहती है । मैबढोनेल ने पाय के स्थान पर 'सेघा का अर्थ लिया है तथा अनेक श्टंगवाली तथा चंचलता ग्रुण-धर्मों की संगति मेघो से जोड़ी है ।५ दोनों दशाओं में गूढ़ार्थ सूर्य की ही ओर संकेत करता हैं । वेद में 'स्वहृश्‌',९ “विभूत- पुम्न' ५ आदि उल्केलो से भी विष्णु प्रकाश सौर तेज के देवता सिद्ध हेति है, जो सूयक गुण-घर्म है 1 अपने त्तीन डगों से समस्त संसार को व्याप्त करने के कारण ही विष्णु ऋग्वेद मे “उछ्णाय' (विस्तीर्ण गतिवाछा) तथा “ऊरूकम” (विस्तीर्ण प्रक्षेपवाछा) है। वे एप” था +एकयावन' (गति से परिपूर्ण) घर्माणि घारयव्‌, ऋतस्प गर्भ:, वेधा (नियमों के पाक) और पुष्यं मौर नव्य दोनों है । उपयुक्त चारो बाते सूर्य की विशेषताएँ हैं । ऋग्वेद में विष्णु घूमते हुए चक्र की भांति अपने नव्ये अश्वों के साथ, जिनके चार-चार वाम है, चलने के लिए प्रस्तुत हैं। मेकडोनेल के विचार में नब्त्रे अश्व दिनों के तथा चार नाम ऋतुओं के प्रतीक हैँ तथा इलोक का अर्थ तीन सौ साठ दिनो के सौर वर्ष से है 15 विष्णु इन्द्र के मित्र हैं तथा सहायक भी हैं । इन्द्र विद्युत का प्रतीक है तथा निष्णु सूप है भतः दोनों का निकटं सम्बन्व है । दीर्बतमा जौचथ्य तहपि के मत्तानुर्पर विष्णु ने पृथ्वी के ऊपर बिद्यमान लोकों का निमपण किया, ज्वं छोक में विद्यम्राव आकाश को हढ़ बताया तथा त्तीत डगो से समस्त संस्तार को माप छिया<। त्रिपाद का उल्लेख पहले हो छुका २० ऋगेद, १ २५४ । २. बैदिक भाइथॉलोजी, मेस्डोनेल, ए० ३६ | ३६ ऋण्वेद, १[१श१८। ४. वेद, १।२५४।६ । ४० ऋफ़चेद, १२५४६ ! &* লে, १।१५५।५ 1 ७. নেন, १।५६।१ 1 मे. बैदिक भाइथॉलोजी : भैनठोनेल, प० ८ 1 ६, मागमतत सम््दायः मरदेव उपात्ययः; ९० ७= |




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