जनता का राज्य | Janta Ka Rajya
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
76
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ग्रामदान ও
जमीन प्राप्त वी गयी, उससे यह जमीन कुछ ज्यादा ही है | ( भू-प्राप्ति
और वितरण का चार्ट अन्त में देखिये ।
भूदान-आन्दोलन के कारण देश में एक नयी आश्ञा और नये उत्साह
कौ रहर दौड गयी । उससे ग्रामीण क्षेत्र वी अन्यान्य समस्याओं पर भी
नयी रोशनी पडने छंगी । देश मे और देहादों में जो पुरानी व्यवस्था
चालू थी, वह समाज में फूट और भेद-भाव ही बढानेवाली थी | नये
আবহা के अनुरूप उसकी पुमरंचना करने की आवश्यकता थी, ताकि नया
प्राण-सचार हो सके । भारत की सभ्यता का, राजनीति का और अर्थ-
नीति वा मुख्य आधार यहाँ के देहात हैं । भारत को जीवित रहना है तो
उन देहातो की सस्टृति को छोडकर नही चर सकता ।
वर्षों पहले से गाधीजी और देश के अन्य विचारक ग्रामौ फी नवरघना
पर जोर देते रहे । अब ग्रामदान-आन्दोलन के कारण ग्रामो में चेतना
जापग्रत करने का और ग्रामीण समस्याओ के समाधान की नयी दिला का
मागें खुल गया 1
सन् १९५२ की वात है । उत्तर प्रदेश मे हमीरपुर निक में विनोबा-
जी वी पद-यात्रा चल रही थी। तव मगरौठ गाँव के निवासी उनके पास
आये और अपनी सारी भूमि भूदान में दे दी । यही से प्रामदान-आन्दोलन
का जन्म हुआ और मसगरौठ को भारत वा प्रथम ग्रामदान होने वा
श्रेय मिला ।
उस बात को अब १४ वर्ष हो गये । यह आन्दोलन देश वे सभी भागों
में दूर तक फैला और आज देशभर में ( त्ता० ३१ अक्तूबर ,६६ तक }
२९,०९१ प्रामदान हो गये ह । इस बीच ग्रामदान के विचारों में कुछ
संशोधन विया गया । सुलभ ग्रामदान के नाम से वही सदोधित रूप आज
चल रहा है । हर तरह के छोगो वे लिषएु वह् मासान लगता है ।
गाँवों में आमूल परिवर्तन वरना ग्रामदान वा रूदय है । आज गांव
केवऊ पहनेभर वो गाँव है । असल में वह कुछ झोपडो वे झुण्ड थे सिवा
चुछ नहीं है। अलगन्अलग जातियों, सकीर्णताओं और प्रत्येढ वर्गों रे
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