आगमों में तीर्थंकर चरित्र | Aagmon Mein Tirthkar Charitra

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Aagmon Mein Tirthkar Charitra  by रूपेन्द्र कुमार जी - Roopendra Kumar Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६) आगममों में ती्थद्वर चरित्र आदित्या तवमसि आदित्यसद्‌ आसीद, अस्त आ्राद्या बृपभोतरीक्ष' भिमीते वारिमाणम्‌ । प्थिव्या। आसीत्‌ विश्वा झुवनानि समाडिवश्वे तानि वरुणस्सव॒तानि । अर्थ-तू अखण्ड पृथ्वी मण्डल का सार त्ववा स्वरूप है | पृथ्वीतल का भूषण है) दित्य ज्ञान के द्वारा आकाश को नापता है ऐसे हैं वृषभनाथ सम्राट्‌ ! इस संसार में जगरक्षक ब्रतों का प्रचार करो । ॐ नमो अहो वरपमो ॐ ऋषभं पित्र पुरु हुत मध्वरं यज्ञेषु नग्नं परमं माहं स्ततं चार श्र जयन्तं पशुरिन्द्र माहु रिति स्वाहा । इत्यादि बहुत से वेद मंत्रों में भी भगवान ऋषभदेव का उल्लेख है । इससे सिद्ध होता है कि भगवान ऋषभदेव केवल जैनों के भगवान नहीं थे अपितु विश्व मान्य महामानव थे | इस महामानव ने भोगभमि में पले हुए लोगों को कम की शिक्षा दी । उन्होंने पुरुषा्थे का पाठ सिखाया । स्त्रियों और पुरुषों को चौंसठ और बहत्तर कलाओं का शिक्षण दिय्रा । अक्षर ज्ञान और लिपि-विज्ञान की शिक्षा दी । अभि, मसि, और क्ृषि के शिक्षण द्वारा उन्होंने मानवजात्ति को उन महान्‌ सद्धूट से उबार लिया , जनता की आवश्यकताएँ अब उसके पुरुषार्थ द्वारा पूर्ण होने लगी । इससे जनता ने सुख शांति का अनुभव किया । इप् रूप मे भगवान ऋषभदेव भ मानवजाति के त्राता हैं, संरक्षक हैं, आदि गुरु हैं और सर्व प्रथम उपदेष्टा है । इसीलिए वे आदिनाथ' कहलाते हैं 1 भगवात ऋषभदेल्न के चरित्र प्रा नतम जैन आगम जस्बूद्वीप प्रश्प्ति, समवायांग सूत्र कल्प सूत्र, आवश्यक नियंक्ति, विशेषावश्यक भाष्य आवश्यक चूणि, आवश्यक हारिमद्रीय, श्रावश्यक् मलयग्रिरि में उपलब्ध हूँ । इसके अतिरिक्त क लिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचाय ने भी अपने त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र में विशद रूप से भगवान ऋषभदेव का चरित्र झा लेखित किया है। इन पमस्त ग्रस्थों को सामते रखकर यह आदिनाथ चरित्र तैयार किया है । भगवान ऋषभदेव के तेरह মনা का वर्णन आवश्यक र्चाण = आवश्यक नियु कित में इस प्रकार उपलब्ध है- धनसत्थवाहघोसण नईगमण अडव्रिवास उरं च | बह््ाजीयेवसे चिता घयदान मसि तया ॥ 1 व॒ आवेर्थक हारिभद्रौय एवं ^~ यावद््यक निर्य क्ति गा० १७६




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