मुनि अभिनन्दन ग्रन्थ | Muni Abhinandan Granth

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Muni Abhinandan Granth by श्रीचन्द सुराना 'सरस' - Shreechand Surana 'Saras'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ९१२ | कु श्रावको ने मिलकर अपनी स॒ भावना को भुनिश्री के समक्ष व्यक्त किया । मुनिश्रवी ठहरे--अलोणपलोणगुत्त --बडी कठोरता के साथ उन्होने नकार दिया। श्रावक चुप हो गए। पर अन्तर की भावना दव नहीं सकी, समय-समय पर हम आग्रह करते रहे, मुनिश्री ठुकराते रहे, इस तरह कई वप गुजर गये । आखिर इस वष व्यावर श्रीसघ के प्रमुख महारथी श्री चिमनर्सिहजी लोढा, आदि अनेक व्यक्ति मुनिश्री के चरणी मे हृढ-सकल्प करके बैठ ही गये, लम्बे आग्रह के बाद मुनिश्री को श्रावकसघ का आवेदन स्वीकार करना पडा और अभिनन्दन समारोह के आयो- जन की रूपरेखा वनी 1 मूनिश्री की मन्तर-उच्छा थी कि टस आयोजन को आध्या- त्मिक रूप दिया जाय | कम से कम प्रचार व कम से कम आडम्बर हौ । हमने मूनिश्री की भावना को ही आदेश मानकर प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रन्थ का आकार-प्रकार भी वहुत लघु कर दिया, ताकि हमारी श्रद्धाभिन्यस्जना भी हो जाय सौर अधिक प्रदणन की भावना न क्षलके । अभिनन्दन समारोह के अनेक मायोजनो मे 'मुनिद्रय मभिनन्दन मन्य' एक आयोजन है, जिसका दायित्व मैने अपने ऊपर लिया था । सके सम्पादन मे श्रद्धेय श्री देवेन्द्रमुनिजी, महासती उमरावकवरजी 'अचना' का जो मागदश्न एव सहयोग मिला है, वह्‌ अविस्मरणीय रहेगा । सम्पादन का प्रमुख भारतो श्री चन्दजी सुराना सरस के कधो पर डालकर मै निश्चित था! उन्होने मल्प समयमे ही अत्यधिक श्रम व सूझ-बूझ के साथ ग्रन्थ को जो नयनाभिराम साथ ही जनोपयोगी रूप दिया है, वह पाठकों के करकमलो मे प्रस्तुत है | मैं सम्पादक बन्धुमो तथा भुनिश्वी हजारीमलस्मृतिप्रवाशन व्यावर, कार्यालय के प्रमुख उत्साही कायकर्ता श्रीमान सुजान- मलजी सेठिया आदि का हृदय से आभार मानता हू और आशा करता हू हमारा यह सत्प्रयास सुधीजनो में एलाघनीय होगा ->-चादसल चोपडा महावीर-जयन्ती १५ अप्रेल, १६७३ (न्यावर)




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