शुद्ध देव अनुभव विचार | Shuddh Dev Anubhav Vichar

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Shuddh Dev Anubhav Vichar by श्री चिदानंदजी महाराज - Shri Chidanandji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७). आत्माका ही एक रूप करके जो विचार अर्थात्‌ एकत्व मे ख्य लीन हो जाना उसका नाम निर्विकल्प हैं। इस रीतिसे साविकटप ध्यानका दृष्टान्त ओर द्राष्टान्त कहा ॥ अव तीसरा द्रव्य देवका स्वरूप कहते हैं; कि जिस वक्त तीसरे भंव मे पुण्यानुबन्धी पुण्य के उदय से तीथेकर नाम कम वाधा, अथवा देवलोक वा नारकी में जो तीथैकरका जीव है, वो नयगमनय से आगामी अपेक्षा लेकर द्रव्य देव है । ऊपर लिखे सबको जानना सो तो ज्ञेय है। पुण्यानुचन्धी पुण्य तो इस जगद हेय है, ओर नयगमनय की अपेक्षा से तीथे कर नाम कमे बांधना उपादेय है. उत्सग॑से तो तीसरे भवके स्वरूपको छोडकर देव खोक वा नारकी मे गये उस वक्त नयगस सग्रह नयकी सत्तासे देवपना दै, जौर अपवाद, से पुण्याजुबन्धी पुण्य वा तीसरे भव तीर्थकर नाम कम बांधा यद्‌ विचार भी अपवादं है । अब दूसरी रीतिसे भी इसी स्वरूप को कते दै, कि ऊपर छिखे समेत वीर्य कर नाम कम हेतु कि- जिससे कर गोत बांधा सो तो सब ज्ञेय है | इसमे उपादेय पेसे हैं, कि यह तीये कर होंगे और अनेक मव्य जीवोको तारेंगे । इस गुणको अंगीकार करे. अथवा अपनी भात्माकों कहे, कि-तूभी ऐसा कर ऐसा विचारना सो उपादेय है । वाकी पुण्य बन्धनादि सव से जानना, ओर उत्सगै से उस में उद्यम करना ओर अपवाद से देवफे गु्णोको विचारना, कि-इसने कैसा उत्तम तीथकर नाम उपाजन किया दै, इनसे अनेक जीव तरेगे ॥ अव भाव देवका स्वरूप क्ते है, कि-जघ देव रोक वा नारकी से आयकर माता के पेट में उत्पन्न हुए, और ज्ञान करके




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