द्रव्यानुभव-रत्नाकर | Dravyanubhav-Ratnakar

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Dravyanubhav-Ratnakar by श्री चिदानंदजी महाराज - Shri Chidanandji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ग्रन्थकार की जीवनी | তু तरफ रचाना हुआ। फिर दिन में तो राजगिरी में जाह्मरपानी छेता भर रातफों पाहाइके उपर चछा जाता | सी कई दिन पीछे एक राधिम एक साधूकी एक जगद बैठा हुवा देखा 1 में पहले तो दूर बैठा हुआ देखता रहा। थोडी देस्में दो चार साधु और भी उनऊे पास आये ! उन छोगॉकी सब याते जो दूरले खुनी ती, सियाय आत्म यिचारऊे कोई दूसरी बात उनके मुहले न निकली तप्र मैं मो उनके पास जावा) थोडी दग पश्चात्‌. शरोर ती सव चस गये पर जो दले वैटा था वदी वैद शा! मैंने अपना सब बृत्तान्त उससे कहा तो उसने धैर्य दिया और कहने एगा तुम घयराओ मत, जो कुछ कि तुमने किया वह सब अच्छा होगा। उस्ने हटयोग फी सारी रीति मुझे घतलाई, घद में पाचमे সম তত लिपुगा। 'एक बात उसने यह फह्दी कि जिस रीतिसे बतछाड उस रीतिसे श्रीपावापुरीमे जो भ्री मह्ावीरस्थामीफी निर्वाण-भूमि है षदा जाय फर ध्यान करोगे तो क्रिचित्‌ मनोरथ सफ़छ होगा, पर हुठ मत करना, उस जायतते चले जायोगे तो कुछ दिनके याद सव इछ हो जायगा, और जो तुम इस नप्रकारको इस रीतिसे फरोगे तो चित्तफी चचलता भी मिट जायगी, और दम लोग ज्ञी इस देश में रहते हैं सां यही फारण हे कि यट भूमि बडी उतम है ।! जप मैंने उनले पूछा कि कमा तुम जैनके साधु হী? परन्तु ल्गि ( चेश ) तुम्हारे पास नहीं, इसका অনা कारण है” तो धह कहने गा कि भाई, हमको श्रद्धा तो श्री बीतराग के धर्म की है, परन्तु तुमकों इस प्रातोंसे क्या प्रयोजन हे ? जो बात हमने छुमझी कह दी है, यद्‌ तुम उसको करोगे तो तुमको आप ही श्रीवीतराग फे धर्मेफा अनुभय हो जायगा, किन्तु मारां यही धदना हे कि प्र चस्तु का त्याग और स्यवस्तुफो ग्रहण यारा भीर किसी सेषधासीकी जाल्म म पसना ! इतना छहकरः चट्‌ वदास चट বানা | में भी वरासे दिन निकलने पर पाद्दोडसे नीचे उतरा और आसपासफऊे गावी म फिस्तास्हा। पोछे दो तीन महीनक्े घाद विहारमें जायकर शध्रावकॉले प्रयन्ध करके पाबापुरीमं चीमाला किया । सोयनपादे,जी कि पावापुरीफा पुज्ञारी था. उसकी सहायतासे जिस माल्यि ( मक्तान ) में कपूम्थन्द्जी क




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