भारत का आदि सम्राट | Bharat Ka Aadi Samart

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) ध्यादि अनेक इसके कारण है, परन्तु यहाँ हमारा यह प्रकरण नहीं है हमे तो यहदेखना है कि यहाँ यज्ञ शब्दका क्या अथ है। यजुर्वद श्र० १ मन्त्र ११ में यज्ञ वाचक स्व” शब्द आया है। इससे पूे मन्त्र ६ में यज्ञ शब्द आयह है उसीका यहाँ वणेन है, स्वरभिचिस्येषम! अथात्‌ यज्ञको देखो । यहाँ स्वः:” शब्दके अर्थ भमहीघर, उवट श्रादि समो प्राचीन आचार्योने यश्ञ दी किये हैं । त्था च शतपश्च ब्रा० कां ११।२।२१ में भी (यज्ञोवे रव:) अर्थात्‌ यज्ञका अर्थ श्वः, किया है तथा च ऐतरेय ब्राह्मण में हे कि “अन्तोबे হল: (4২৯) अथांत प्रध्त्रीका अन्तिम भाग स्व है | डपयु क्त सब प्रमाणोंसे सिद्ध है कि सरस्वती अथवा सार- स्वत उस देशका नाम था, जो कि समुद्रके किनारे था। सरस्वती शब्द भी इसी अथको प्रकट करता है, क्योंकि सरक श्रध जल प्रभिद्ध है। बस जो विशेष जल वाल्बी भूमि हो उसे सर- स्त्रतो कह है अत. सरम्बती प्रान्लको सीमर समुद्र तक थी । अनेक विद्धानोके मतमे पश्चिम स्ाइबेरिया সাল্বক্কা নাম स्वः है | हमारा अभिप्राव इतना ही है, कि पूर्वो क मन्त्रम इडा, सर. स्व॒ती भारती, आदि शब्दोंके अथ प्रान्ल या देश विशेष हें । कथा च -निस्ा भूमिनृपते । ऋग्वेद मडल १ सू० १०६ सत्र ८ यहां भी तीन भूमियों का डल्लेख है। तथा-- इता सुरस्यन मही तिसरदेवी मयाञुवः ऋग्वेद मं? ११३।६ यहाँ भी तीन देवियोंका उल्लेख है परम्तु यहाँ भारतीके स्थानसें मद्दी शब्द आया है, अतः भारती ओर मही एकार्थेक शब्द है, यह सिद्ध होगया।




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