जिनहर्ष ग्रन्थावली | Jinharsh Granthawali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भमिका भारतीय साहित्य को जेन विद्वानों का जो योगदान मिला है, उसकी गरिमा बहुत ऊेची है। उतकी साहित्य-साधमा प्राचोन कारू से आज तक सतत्‌ प्रकादमान रही है ओर इसका अत्यन्त महृत्वपूर्ण फल प्रास हुआ है। जहाँ उन्‍होंने प्राचोन भारतीय भाषाओं में बहुविघ साहित्य-रचना प्रस्तुत की है, वहां मध्यकालीन भारतीय भाषाओं के साहित्य भडार को भी अपनी मूल्यवान कृतियों से भरा-पूरा किया है। यही तथ्य आधुनिक भारतीय भाषाओं के सम्बन्ध में समझा जाना चाहिए। इस सुदीर्घकाल में जैन-समाज में इतने अधिक साहित्य-तपस्थी हुए हैं कि उनकी नामावली प्रस्तुत करना मौ कोई सहज कायं नहीं है, फिर इसका सम्पूर्ण पर्यवेक्षण तो और भी कठिन है । जैन मुनियों का उहृ श्य सद्धर्म का प्रचार करता मात्र रहा है, जिससे कि जन-साधारण में सद्‌मावनां बनी रहे । इस उदक्य कौ समुचित पूति के लिए साहित्य एक उत्तम साधन है। फलस्वरूप जेन मुनि जीवन प्रयन्त विद्या-व्यसनी बने रहे हैं। उनके सामने सदुधर्म के अतिरिक्त अन्य कोई तसांसारिक स्वार्थ नहों रहता । यही कारण है कि साहित्य की श्रीवृद्ध एवं उसका संरक्षण उनके जीवन का पुनीत ब्रत बन जाता है और वे इसका आमरण पालन करते हैं। इतनी निष्ठा के द्वारा तैयार किया साहित्य-संचय अति विस्तृत एवं परमोषयोगौ होना स्वाभाविक है 1




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