रायचंद्रजैनशास्त्रमाला | Raychandrajainshastramala

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Raychandrajainshastramala by भारमल मेघ जी - Bharmal MeghJi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शुद्ध, ऐसा कहना पीताकर তবলা ज्ञापयितु- प्राकारकी भेदे नयं क्योंकि ऐसा है अहो प्रकाशका भेद यय्याय जम्भा मीया जीवा जीवा स्थादवाच्य एवं चार पर्याय “तब स्यात्‌ ( बोध) तिनोंमें अर्थ अभदको दुर्णय- विमुख्यत्वेन युक्त: संमिता अणुप्ण। दुणैय- 52 तदा भासतां सतत धृताः दुण्णैयाः जिसके हुए क अभिप्रायसे जो बहुवचन लगाकर खीकार হাজান को हमारे समानही होनेसे उन नयोंके गुद्धिपत्रम्‌ |. शुद्ध, ऐसा न कहना पीताकार द्रढयन्नाह ज्ञापयितु प्रकारकी ঈহনত্র तथा यह है एेसा पूते हो सो अदो, प्रकाशके भेदसे पयौय जम्मा भेदा जीवाजीवा स्यादस्त्येव खादवाच्य एव चौथा पयीयार्थं तब “स्यात्‌ (बोध) का तीनोंमें तथा भदको दुनेय- विमुखत्वेन प्युक्त: संमता अणुण्ण दुनय- तदाभासता सप्तश्रुताः दुनैयाः जिसके कहे हुए का जो अभिप्राय तथा बहुवचन भी लगाछेना चाहिये स्वीकार शास्रोंमें হুলাই समान हैं इसलिये उसके ५ द ५९




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