मालवी एक भाषा शास्त्रीय अध्ययन | Malvi Ek Bhasha Shastriya Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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चिंतामणि उपाध्याय - Chintamani Upadhyay
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देवराज उपाध्याय - Devraj Upadhyay
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)=
मालवे का उदुभव श्रौर् विकासं |
देखकर भाषा श्रौर प्रदेश की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए धूर्त शब्द
की विशेष व्याख्या कर डाली । उन्होने धूतं शब्द का श्रथ 'डिप्लोमेट'
माना है। किन्तु भाषा की प्रतिष्ठा या श्रप्रतिष्ठा का यहाँ प्रश्न ही
नहीं उठता । श्लोक के उक्त भ्रश्ष का पा.न््तर भी प्राप्त है--योज्या
भाषा अवन्तिजा ^ । अ्रवन्तिजा को धूर्तों की भाषा घोषित करने बाला
श्र श किसी दूषित मनोवृत्ति के कारण जोड़ा गया ज्ञात हाता है। इसी तरह
मालवी की प्रानीनता का सिद्ध करने के लिए डॉ० परमार ने भी मालवी
की जननी अवन्तिजा को माना है।' किन्तु राजशेखर द्वारा काव्य-
मीमांसा में प्रस्तुत किये गये नवीन प्रश्न का वे समाधान नहों कर सके ।
प्रवन्ती, परियात्र एवं दशपुर / आधुनिक मन्दसौर ) के निवासियों की
भाषा को राजशेखर ने 'भूतभाषा' कहा है।? किन्तु भूत के साथ पिशाच
का सम्बन्ध जोड़कर पेशाची भाषा को अनाये भाषा करार देना उचित
नहीं है ।£ भूत-भाषा पेशाची का ही दूसरा नाम हैं। फिर भरत मुनि
कं युगसे लेकर राजशेखर के समग्र तक लगभग ७०० वर्षों के दीर्घका-
लीन आव रगा को चीरकर ग्रवन्तिजा का वही रूप स्थिर रहा होगा, यह
विचारणीय है।
पालि एवं अवबन्ती ४देश की भाषा
जन-भाषाओं के श्राधार् पर साहित्यिक भाषाओ्रों का जन्म होता हे
अर्थात् प्रत्येक साहित्यिक भाषा का श्राधार कोई न कोई जन-भाषा अवश्य
होती है। जन-भाषा की अनेक उप-धाराश साहित्य की भाषा को परिपुष्ठ
करती रहती हैं। जहाँ तक पालि प्रौर संस्कत के जन-भाषागत स्वरूप
का सम्बन्ध है, दोनों ही 4बदिक लीक-भाषा से उदभूत हुई हैं। प्राकतों का
= ५ 4०
१. वही, (नाट्यज्ञास्त्र) पाद ट्प्पिरशी १ ७1५१
२. 'मालबी और उसका साहित्य प्रष्ठ २
ই. आावस्त्यो: पारियात्रा: सह दह्मपुरज भृं तभाषा भजन्ते । काव्य मोमांसा
४. मालबी और उसका साहित्य, पृष्ठ २०-२१
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