सिध्द-स्तुति और नंदी स्तुति | Siddh Stuti Aur Nandi Stuti

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Siddh Stuti Aur Nandi Stuti by रतनलाल डोशी - Ratanlal Doshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिदस्तुदि शा পপ भी सिद्ध, भन्तिम भव को अवगाहना से तीसरे भाग जितनी एम अवगादनावाछे हाते हैं । जरा घोर मरण से ঘিলঙহুল भूबलो का सावार किसी भी सौरिक प्राकार सेनदी भित्वा है (-ष्त्यन्दम प्रकाप्नयनस्यित, परभिययन्दत प्रवार्‌ के आकारो मेही रहा हुमा हो एसा )1 जत्य प एगो सिद्धो, तत्य प्रणता पघपलयधिमुपया । क्पेण्णरामवगाढा, পুত सव्र प कललौगते (९५१ अहा एक सिद्ध है. वहाँ मय के धय चे विमृवत, (धर्मा. सितक्ायादिदन्‌ ) भ्रवित्य परिणामतव ते परस्पर अवगाढ লব पिदर प्रौर অন লারা था स्पा कर रहे हैं। पुस प्रणते सिदे, सव्य पएसहि पिमे सिद्धा तै वि प्रपेज्जगुणा, देसपएपेहि जे पुद्रा ॥१०॥॥ सिद्ध, निश्चय ही सम्पूण লাল ইশা सं प्रनन्न तिदो हा रपा मरते हैं भोर उन सर्वात्म प्रदेशा से स्पष्ट सिद्धा से धससय गुण व रिद्ध हैं-जो देगप्रतेशों से स्पष्ट हैं । प्रसरोरा जीवधणा, उयरत्ता दस्णे ये णाणे य । सागास्मणामार, लर्दणमेयर तु सिद्धाण ॥१९॥ थे घिद्ध भ्रगारोरी, जायघन भोर दशन भौर भान-इन दामों उपयोगों में क्रम स्थित हैं। सावार( - विशेष उपयोग स्=शान) भौर भनावगर{ = खापान्य उपयोग = दन} वेना অনিতা হা লযাদ ই?




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