वर्णी-वाणी - भाग 4 | Varni Vani : Bhag 4
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
550
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विद्यार्थी नरेन्द्र - Vidyarthi Narendra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ह४)
चाहते दो तो पर्रित्त चैसथम रों न भूलना” सदाके लिए साथ रह
गया ] परिजन दुःखी थे, आत्मा विकल थी, परन्तु गृह भारश
प्रश्न सामने था; अत (स० १६४९ ) मदनपुर, कारीटोरन और
खण आंदि स्कूलेमिं मास्टरी की ।
पढना और 4ढाना इनके जीवनका लक्ष्य हो चुका था,
अगाध क्षानसागरकी थादह लेना चाहते थे, अत भास्टरीकों छोड
पुन अच्छान विद्यार्थी वेषे, यत्रतत्र सर्वर सावनाकौी
साधना म, क्षान जल कणोंडी सोज में, नीर पिपासु चातककी तरद्द
चल पढ़े ।
स० १६५० के दिन ये, सौमाग्य साथ था, अत सिमरामें एक
मद्र मिला विदुपीरत्त श्री सि० चिर्रौजाबाई जी से भेंट द्दो
गयी । देसते द्वी उनके रतनसे दुग्धधारा घद निशली, নাহ
का मातृ-प्रेम उसड पढ़ा । चाइजीने स्पष्ट शब्दोंमें फ्दा-- 'मैया ।
चिन्ता करनेकी श्राचर्यक्ता नदीं । सुम दमारे घमपुत्र हुए।?
पुलकित वद्न, हृद्य नाच उठा, वचपनमें मो की गोदीका मूला
हुआ स्वर्गीय सुस् अनायास प्राप्त दो गया। एक द्रिद्रशा
चिन्तामणि रल निठपयको उपाय श्रौर असदायपरो सभरा
मिल गया ।
सइनशीलताके प्राइस में--
बाइजी स्थय शिक्षित थीं, सादूथम और क्तंव्य पालन उन्हें
याद या, अत प्रेरणा दी-- “मैया । जयपुर जाकर पढो ‹ मातृ
आज्ञा शिरोघाये की ।
(१) जयपुरके लिये प्रस्थान किया, पर-त्ु जब जयपुर जावे
समय लश्करकी धरमंशालामें सारा सामान चोरी चला गया केचल
पाँच आने शेप रद्द गये तव छ आनेमें छतरी बेच कर एक एक
वैरे चने चवते हुए दिन वाटते बरआसागर आये। एक दिन
User Reviews
No Reviews | Add Yours...