श्रेष्ठ पौराणिक नारियां | Shreshtha Pauranik Nariyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about यादवेन्द्र शर्मा ' चन्द्र ' - Yadvendra Sharma 'Chandra'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“हूँ दीदी 1
दशरथनन्दन शम धनुष को क्यो नही तोडते | बैठे-बैठे
देख रहै ह।“
उमिला ने तपाक से कदा, “देखने दो, हमारा इससे व्या
वनता विगढता है ।”
भत समझती क्यो नही । क्रितने सुकुमार ओर तेजस्वी है
বান 171
“अब समझी, सुन दीदी, हमारे भाग्य मे जो वर लिखा है,
वही मिलेगा | यह विधाता का लेख हैं। उसमें परिवर्तत की
कोई सम्भावना नही ।”
सोता ने उसे म्मभेदी दृष्टि देखा फिर वह मुसकरा पडी।
एक-एक करके सारे राजा असफल हो गये । उनकी छूरता,
साहम और अभिमान मिटता चला गया, साथ ही राजा जनक
भी उदास होते गये । उहे लगा कि कही यह शिवघनुष नही
टूटा तौ उनकी कन्या सीता क्या कुँवारी रहेगी ? वे पीडा से
भर मपे)
जवे सभो राजा निराश हो गये तब राम उठे । सीता के
चेहरे पर शान्ति छा गयी 1 एक मुसकान दोड गयी ।
নিলা ने उपहास से कहा, “यदि दशरथनन्दन रास ने
छनुय नही तोडा तो ?”
सीता ने कहा, “अब शका की जगह वस्तुस्थिति को देखो ।
बाम उठ गये हैं। वे विश्वामित्रजी को प्रणाम कर रहे हैं। ”
राम ने सबको प्रणाम किया और मन-ही मन शिव आराधना
की! फिर वै शिवेधनुष की भौर वढे।
एक वार उन्हाने उपस्थित लोगो को देखो । फिर शिवधनुष
को सिर नवा कर देखते-देखते शिवधनुष के टुकड़े कर दिये 1)
सोता गीर ठ्मिला प्रसन्नता के मारे उछल पड़ी ! उनकी
सोता / १५
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