धर्म और समाज | Dharm Aur Samaj
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.41 MB
कुल पष्ठ :
299
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भर्म की झावश्यकता जि
चब मनुष्य में दार्सनिक चेतना सइदयता शी तीइठा भौर सम्पूर्णता के प्र का
जिद ज्ञान हो जाएगा ठब भपेदाहठ भषिक लपयुक्त सामाजिक जोगन का जरम
होगा थो न केवस स्पक्तियों को भपितु जातियों भौर राप्टो को मी प्रमावित
करेया । हमे इस गई ब्पबस्था के सिए पहले भ्पने मन म॑ भौर फिर बाहमा ससार
में युद्ध करता है ।
यह मुझ सम्पठा भौर बर्बरता के बीच सपर्प नही है गयोषि प्रत्यक योद्धा
चिप सम्मता सममता है उसकी रसा क॑ मिए भड रहा है यह मुद भतीत नो
पुनइस्बी बित बरने का मा थीर्च-पीर्ण पुराती सडी-गसी सम्पता को बचाने का
प्रमत्त मही है. पहु ठो विपटन बी बहू भस्तिम जिसा है जिसके बाद एक शम्बी
प्रसेष-पीडा के दाद जिस्वनसमाथ का जम होगा । बयोकि इस परिवर्तल करने से
बहुत मम्द है इसलिए एक मई बारनणा धरम लेने के सिए सर्प गर रही है भौर
प्रचंड विस्कोटो के हारा बाइर भाने का मार्य बहा रही है। यदि पुरातत ससार
को हिसा जिपत्ति कप्ट प्रातक भौर भम्मवस्था से मरना पे भौर यदि सह पपते
बिरते के साव-साथ बहुत-सी भच्छी सुम्दर भौर सत्य बस्तुपो को सी गिरा दे रक्त-
पाठ हो प्राणो की हाति हो पोर भ्रनेको की भारमाएं, बिज्ञत हो जाए तोइसका कारण
केबल यह होगा कि पार्तिपूर्वक उस गूतल ससार के साथ प्पना पमजन करने
(ताशमेत्त बिठाने) में प्रसमर्प हैं थो लारत सदा पविच्छेत था भौर भव तथ्यता
'पषिच्छेघ बलगे का प्रमत्त कर रहा है । मदि हम भ्पनी स्वतरत इचडा से भाये
बदम तही दढा समते यदि हम प्रपती पीठ पर शदी निर्जीब बस्तुधो को उठारकर
नही फेंग सकते तो एक थोर दिपत्ति हमारी पाले वौलेगी भौर उन्हे उतार पेंकते
में हमारी सहायता करेमी भीर चस कठोर बढियो को चूर-चूर गर देमी जो हमारे
रदार मतोबेगो को पमु किए हुए है मोर बुद्धिमता के मार्ग में रकाबट बती हैं।
बुराई का प्रायिर्माव बोई प्राकस्सिक बटनता सही है। हिसा भरमाचार सौर
बिद्वेप के तप्प किसी भम्दगस्पा या मन की मौज के सूचक शही है भ्पितु एक तैतिक
ब्पबस्था के चिह्न है। जव प्रकृति के पाषारमूठ नियम को थो मुगित एकता
मनुष्य घौर शातूमाब के प्रति धादर है पैरो ठसे रौद दिया लाता है तब भस्त
ब्यस्तता बिद्वेप भौर युड़ के पतिरिक्त किस बस्तु थी पापा नहीं की था सकती ।
बह इतिहास का तर्ष है. पौर सम्मन है कि जो बस्तुए पुरानी पड गई हैं जितकी
चपयोमिता कमी की समाप्त हो मई है भौर थो प्रगति के माब मे बाबा धनो हुई
हैं उतमें थे सतेक को बहा ले थाने के सिए इस प्रकार की भ्रम्पबस्पाए '्ौर बड़
बडे प्राबर्पक हो । इस समस थी चदवि संसार मीठिक कप स बूभा से मरा
दिशाई पथ्षता है जब बस मय धसरप भौर निप्ट्रता ही मातब-जीवन की बास्त
बिक्ताए प्रवीत होती है, सत्य घोर पेम के महात प्रा्स भी भत्दर ही भरइर भार्य
कर रहे हैं पौर बे बल घोर घसत्य ने प्रमुत्व की जडो को खोलला कर रहे हैं।
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