सम्मलेन पत्रिका | Sammelan Patrika

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Sammelan Patrika  by श्री. रामप्रताप त्रिपाठी शास्त्री - Shree Rampratap Tripati Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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= = से एकदम भिन्न होने के कारण उन्होने बुद्धत्व ओर परिनिर्वाण कं बीच भगवान्‌ बुद्ध कं जीवन को विभिन्न अवस्थाओं को चित्रित करना प्रारंभ किया। यही कारण है कि जैन-अतिमाओं की अपेक्षा बद्ध प्रतिमाओं में अधिक विविधता और सजीवता पायी जाती है । छा ऐतिहासिक, भौगोलिक, व्यावसायिक और सांस्कृतिक आधारों पर प्राचीन भारत का अन्तर्देशीय और अस्तर्राष्ट्रीय संबंध समझने के लिये भारतीय कला बहुत प्रामाणिक और महान्‌ साधन है । भारत की सादृश्यवादी कला अतीत को समञ्लने मे हमारी बहुत वडी सहायिका सिद्ध हुई है। सिन्धु-सभ्यता- से लेकर मध्यकाल तक की अन्‍्तर्देशीय, अन्तर्राष्ट्रीय भारतीय व्यवस्था समझने में हमें हड़प्पा भरहुत, सांची अमरावती, नागार्जुनकुंड, अजंता और मथुरा में प्राप्त कलाकृतियां सहायक सिद्ध हो रही है। प्राचीनकाल के जलयानों, बाजारों, गाड़ी, बैल आदि के , चित्र प्राचीन भारत के सार्थक रोचक चित्र प्रस्तुत करते हं । मुद्राओं ল कला भारत की प्राचीन मद्राए केवल इतिहास का ही बोध नही कराती उन पर अंकित संकत- चिन्ह उस समय की कला की भी परिचायिका ह । इनसे यह्‌ भी जाना जाता ह्‌, कि प्राचीन काल मेँ धमं गौर कला का अटूट संबंध रहा ह । शब्द कल्पद्रुम मे मुद्राओं की पांच प्रकार की लिपियों का उल्लेख हं--१ मुद्रा (रहस्यमय) २ शिल्प (व्यापार संबंधी) ३ लेखनी-संभव (सुरेख ) ४ गुण्डक (शीघ्रलिपि) तथा घृण (जो पढ़ी न जा सके) महावेयाकरण पाणिनि मुद्रा शास्त्र के विशेषज्ञ थे। उन्होंने अष्टाध्यायी के एक सूत्र संघादभलक्षणेष्वतयत्रिज्ञामण्‌' में यह बताया है कि संघों के अंक और लक्षण प्रकट करने के लिए अनू, यन्‌, इनमे अन्त होनेवाली संज्ञाओं में अब प्रत्यय रगता हं । रोघको के निश्चयानुसार सवसे पुरानी मुद्रा कार्षापण ओौर निष्क ह । वस्तुतः कार्षापण मुद्रा पुराण-मुद्रा का एक भेद ही ह । पुराण मुद्राओं के संबंध में पुरातत्ववेत्ताओं का मत है कि इनका प्रचलन ईसा पूवं ३००० वर्ष पहले रहा है । इन मुद्राओं में छत्र-चामर,-सूर्य, घट के ऊपर षदूविन्दु षट्कोण, गज, वृष, कुक्कुर, गोमुख, वृक्ष-स्कन्ध, षट्दल कमर, षडारचक्र, सप्तर्षि, द्विकोष्ट गोपुर, अष्टदल कमल, सुवणं राशि, राजंस, नदी पुष्पर्ता, कभण्डलु, मत्स्य, सवेदीवृक्ष, गरुड, मयूर, कृष्णमुग, ध्वज, पताका, मं दिर, त्रिकोण के सुन्दर चित्र अंकित हे । ये मुद्राएँ प्राह मौयकालीन है । गुप्तकाखीन मुद्राओं से गरुडध्वज लक्ष्मी, कमलासना लक्ष्मी, पद्महस्ता लक्ष्मी, अम्बिका- लक्ष्मी, गरुड़, नदी के चित्र चित्रकला के उत्कृष्ट नमूने हे । यान्त्रिक कलाएँ ललितिकलाओं की भांति यंत्र कलयो का आविष्कार ओर सावभौम प्रचलन प्राचीन भारत मे पर्याप्त रहाहै। ऋग्वेद-में विमान का वर्णन, और उनके निर्माण की विधि का संकेत मिलता ह--जो जाकारःमे' पक्षियों के उड़ने की स्थिति. को जानता ` है वह समुद्र, आकाश की




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