श्राद्धविधि प्रकरण | Shradhvidhi Prakaran
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
449
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about तिलक विजय पंजाबी - Tilak Vijay Punjabi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ইউ प्रकरण ५
शब्पामें से छोकर छठे तव उस सुर्सते उमझे मुंहसे साप निकलती देख एक दम मिट्टो और पाली उठा कर छापा
दरोगा साइब मारे हो मल रहे ये उसने उप्के मुह पर मिट्टी भौर पानी डाछ दिया कौर थोछा कि हुझ्ूर
मापे गुहमे माग छग गई ] इस घटना से दरोगा साहब ने रुसे मार पीटफर मौर मूष सममः कर भपने
मिकाऊ दिया | इस प्रकार पसन का सादार्थ मे सममले धाले प्यक्ति मी घर्मके सयोग्य होते हैं ।
४ पहछेसे ही यदि फिसीने व्युव प्राहीद (मशमाया हुमा) हो हो सी गोशासफसे मय्माये हुए मियति
प्रमुक्नके समान रुसे घमंके शयोग्य ही समममा घाहिये। इस प्रकार पूर्यांफ थार दीप घाछे मनुप्प को घर्म
अपोग्य समफना साहिये |
१ मध्यस्यक्त्ति-समद्गष्टि धमेके योग्य होता है। शग द्वेप रहित सात्र फुमार झाविके समान
चाहिये । २ विशेष निपुण मति-पिशेपढ जैसे कि हेय ( स्यागने योग्य ) छेय ( जानने पोग्प ) भोए
( शर॑गीकार कएने योग्य ) ङे पिपेकको खासन वापर दुद्धिवाला मनुष्प भमेके योग्प समसता ३ पयाय माणै
स्याय के मार्गे वुद्धि एणने प्राखां प्यक मो ङे योग्य जालना ! ह्व निसं घचम स्थिति-अपने धव
प्रति्निदृट एने घाठा मनुष्य मी घरमे योग्य सममा 1 एख प्रकार घार गुण पु मनुष्य घेको चोर
परण शाता है)
वथा দয লী शिसिमेफ प्रकरणों में श्राधकफे योग्य इक्कीस गुण सी कहे हैं सो मीखे भुताषिफ । 1
पम्मरयणस्स लुगो, णखुद्दो रूबर्य पग३ ओोमो । “
छोगण्पियो अकूरो, मीर सषठो सम्िष्णो ॥ १ ॥
छजाङमे व्याव, मश्रयो सोविद्टिगुणरगी | |
षट् युपवखजु शे, घुदी्वंहा विषेष्ण्णु ॥ २॥ ।
मुड्गाणुगो विणोमों, कयण्णूमो परदिभरथ्यकारी य |
दह नेव रकस, एगबाघ रारि सेजुणे ॥ १]
~ १ भक्नुदर-मयुन्छ ह्वय ( गम्मीर पि पाटा दो परत ्रुष्छ स्यमाषप्राटा मी १२
(पाशो इन्द्रियों सम्पूर्ण सौर स्पच्छ हां परस्तु काना झन््धा तोता छूला छ॑गड़ा हो ) ६ प्रकृति
खमावसे शान्त हो किस्तु ऋर म हो ५ छोक प्रिय (दान, शी, म्याय, पिनय, भोर पिधेक भावि वम युक्त
हो । ५ भगटूर~भहिन्ट चिच (ईप्या भादि दोष रहित हो ) ६ सीझ-छोफ निन्दते पराप तथा
डरने थाठा हो 10 ससझऊ-कपटो नल हो 1८ पसदाक्षिण्य-प्रार्थता भंगले वसने धाला शरणागत का
फरतने पाछा हो। ६ छत्तालु--मकार्य्प धर्फ यानी झद्याप्ये फरनेसे डस्मे याछा | १० द्पालु-सप पर दूर
रपने पाला ! ११ मभ्यस्थ--एग हे च रदित भयवा सोम टृष्ठि सपने था हृसरैफ्ा पिचार किये पिता या
मागं म सपफा समान हिंद फरमे पाटा, यपां हत्व क पर्ठिनसे पक प्र राग हूसरै पर कप न रखने पाए
मतुष्प दी मप्यस्य गिता झाता है। मध्यस्थ सौर सोमट्ठष्टि इस दोनों शुणों को पकड़ी गुण माता है। १ ।
৫
সম
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