अजी सुनो | Aji Suno

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Aji Suno by गोपाल प्रसाद व्यास - Gopalprasad Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अजो सुनो तेरे स्वर का अनुकरण नहीं कर सकता था कोदं प्राणी 1 पर, आज मुझे मालूम हुआ तू निरी भैंस है, मोटी है काली है, फूहड़ है, थल-थल, मरखनी, रेंकती, खोटी हे ! मेरे ही घर में आज चली त्‌ पाकिस्तान बनाने को ? मेरी ही हिन्दी मं নী तू जनपद नया बसाने को ? में कहता हूं हट जा, हट जा, वरना मुझको आरहा तेश ! ओबाबूजी की `




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