शंकुन्तला नाटक | Shakuntala Natak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| ঘান্যন্বল্গা नाठक १६
के विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व भी करते हैँ--कण्व, कश्यप, शारज़रव,
शारदत भ्रादि तपोवासियों के प्रतिनिधि हैं, ाबुस्तला, प्रियंददा, भनुमूया
भ्रादि तरुणियाँ नारी-वर्ग की प्रतिनिधि हैं; दुष्यन्त प्रजापालछक राजाझो पा
आदर्श है, और मित्रावसु, जानुक व सूचक राज-पर्मचारियों के प्रतिनिधि
हैं। इन वर्गों की प्रमुप विशेषताएँ इनमे देसी जा सकतो हैं। नाटककार
की दूसरी विशेषता पात्रों के चरित्र का यथार्थ निरूपण है। यद्यपि दुष्यन्त
झौर शकुन्तछा के चरित्रो में प्राद्शंदादिता कवि का मुख्य रूदय है, किन्तु
उनके व्यक्तित्व मे श्रतेक दुर्बंछताशो का वर्णन करके उन्हे यथार्थ से दूर
नहीं रफ्ता गया। वे दोनो पतन से उत्थान वी भोर बढ़े हैं। कालिदास की
एक प्रन्य विशेषता यह है कि उन्होंने महामारत के निर्जीव एवे श्रस्वा-
भाविक पात्रो को नवीन रूप मे कल्पित करके मनोदवंज्ञानिक दूष्टि की रक्षा
कीहै। महाभारत कै निर्जीव एव काम्.क दुष्यन्त को दाङ्कन्तछा नाटक के
छठे सर्ग में घिरही के रूप में चिधित करके उसे सजीव रूप স্হান किया है।
इसी प्रकार प्रगल्मा एवं निर्भीक शकुन्तता को कालिदास ने छज्जाशीछा,
प्रेम-परायणा भ्ौर मुग्घा के रूप मे कल्पित करके उसके चरित्र में स्निग्घता
का सचार किया है 1
देशकाल तया उदेश्य
सािष्यको समाज का दपण माना गयाहै, श्रत उसमे प्रासंगिक रूप
भ समकालीन समाज की साच्छृतिक, प्रायिक श्रौर राजनीतिक परिस्थि-
'तियो का प्रतिविम्ब रहता है । 'प्भिज्ञान शाकुन्तल” का रचयिता भी इस
दिश्षा में पर्योप्त सजग रहा है । उसने पात्रो की उद्तियो भौर विभिन्न
परिस्थितियों का सपोजन करके तत्कालीन समाज का स्पष्ट प्रतिविम्ब
प्रस्तुत कर दिया है। उस समय वर्णाथम घममं की प्रतिष्ठा थी--कण्व भौर
बद्यप के त्तपोवन दुर-दुर तक विश्यात थे | राजा दुष्यन्त की उक्ति 'शान्ति
क्षेत्र श्राश्नम यहै, पुन्नहि याके माह” से यह भी स्पष्ट है कि इन आश्रमों का
वातावरण वल्याणकारी होता था। शजा प्रजा-हित मे तत्पर रहते ये।
दुष्यन्त ने भी भ्राश्नम वासियों की दुष्टी के तास से मुवत करने की श्रार्थना
स्वीकार की थी। राजा्ो को प्रजा की भाय का छठा भाग प्राप्त करने का
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