आचार्य कालक और मजदूरिन का सरल अध्ययन | Acharya Kalak Or Majdurin Ka Saral Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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: वर्मानी के उपस्थात्तों की वर्शनशेत्री रोचक, भाषा प्रताहमयी, कपोपकपन नाटकीय एवं चरितर.विक्तेषण मनोवैज्ञानिक है । वर्माजी क उपन्यासो कै भरति- रिक्त ऐतिहासिक उपन्यासो मे निरालनजी का श्रभावती' राहू पह्िव्यायन (सिह सेनापति' चतुरसैस शास्त्री का सोमनाथ व 'वेशाली की तगरवध्‌ अपना प्प स्थान बनाये हुए हैं | गल्ेयजी मे शेखर : एक जीवनी म मानवे के मतोविकास्त का एक वैज्ञानिक चित्रण किया है | इस उपन्यास में उनका हृष्टिकोश बौद्धिक भी रहा हैं। नदी के द्वीप, में उनकी प्रतिभा निखर उठी है | इलाचन्द्र जोशी भी मती- विश्ेषणात्मक उपन्याप तिने वति ६ | 'सन्‍्याती' प्रेत भौर छाया! 'निर्वासिता उनके प्र्चिद्ध उपस्यात्त हैं| इसी प्रणाली पर श्री द्वारकाप्रस्तादजी ने 'पेरे के बाहर मामक उपन्याप की सवना की 1 उपन्यात्.पाहित्य में साम्यवादी व मार्क्सवादी विधारधारा श्न समा वेश करने वाले श्री यगपाल हैं। प्रपते उपन्यासों मे उन्होने माक क्रान्ति प्रौर वर्गहोत समान की स्थापना पर जोर दिया | 'कामरेड!, पार्टी कामरेड' देश- द्रोही! झयादि में भौतिकवादी सामाजिकता का भें कन किया गया है। पाधुनिक उपस्यास-साहित्य प्रनेक हयों में समृद्ध. है। उपयु पत लेखकों के परतिरिक्त उपेनधनाथ परर, भर चल, गरदत्त, विष्णु प्रमाकर तथा रजेन यादव उपन्याप्तके भण्डार को भर रहे हैं। भाज की प्रगति को देखते हुए उपन्याप्त साहित्य का भविष्य प्रत्यन्त उन्ज्वल है। अर्चय कलक शब्दार्य-- आरम्भ पृष्ठ १ निर्वाण-प्ुक्ति | विलोड़ितन्मपा তো, हिनाया हमा । प्रवृत्तियांन्‍्मादतें, बहाव, प्रवाह | वर्स-मृत्र-वर्ण व्यवस्था । प्रांगण>प्रांगन । विमू्तियांट्महान्‌ पुएप। विरूप, बुझुप-महा। ह्रास्तियाँ-्सन्देह, इक | লুল पीडित । महत्वाकोक्षापो प्रयत इच्छामो | रूक=इप, पन्ति । नमान्तृफान } पृष्ठ २ स्वयरनमुनहुरे । स्वप्निनिनपपनो হ্যা | মন্থন दूमरे के महारे | व्याध्र.मालवापता ! দুলীলটীহ, জু ঈ নাহ! হলছিরঙভনা।




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