दर्शन का प्रयोजन | Darsan Ka Prayojan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Darsan Ka Prayojan by डाक्टर भगवानदास - Dr. Bhagwan Das

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डाक्टर भगवानदास - Dr. Bhagwan Das

Add Infomation AboutDr. Bhagwan Das

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
दर्शन का मुख्य प्रयोजन ५ पर बालक अपने प्रश्न से नहीं डिगा ] मपि सवं जीवितमल्पमेव, तवैव वाहास्तव शरत्यगीते | न विन तपंणीयो मनुष्यो, वरस्व मे वरणीयः स एव ] यस्मिन्निदं विचिकित्सति देवा, यत्साम्पराये महतिं बूहि नस्तत्‌ । योऽयं वरो गूढमनुप्रविष्टो, नाऽन्यं तस्मान्नचिकेता चणीते ॥ “यह्‌ सब वस्तु जिन से अप मुक को लुधाते हो, वह्‌ सव तो आप्र हयी की रहेगी, एक न एक दिन सब खाना-पीना, नाचना-गाना, हाथी-घोड़े, प्रासाद-उद्यान, ऐश-आराम आप वापस लोगे | देवताओं के भी इस विषय से शंका है, मृत्यु का भय है, इसी लिए तो मुम्े इस शंका का निवारण ओर भी आवश्यक है। यह वर जो,मेरे सन में गहिरा घँस गया है, मुझे तो इस के सिवा दूसरा कोई पदाथे नहीं चाहिए। दूसरा कुछ इस समय अच्छा ही नहीं लगता मुमे तो प्रश्न का उत्तर ही चाहिए, असरता ही चाहिए, मृत्यु का मय छूटा वो सब भय छूटा, अमरता मिली तो सब कुछ मिला 1 तब यम ने उपदेश दिया, वेदांत विद्या का भी ओर तत्सबंधी योग विधि, प्रयोग विधि, का भी, “मेटाफिज़िकल सायंस” का भी और “साइको-फिजि- कल आटे” का भी, निरोध का भी ओर व्युत्थान का भी, भोक्षशास्त्र, शांति-शास्त्र, “सायंस आफ पीस”, का भी, ओर शक्ति-शस्त्र, “सायसे आफ पाचर”, “ओकल्ट सायस”, का भी । मृत्युमोक्तां नचि केतो ऽथ लब्ध्वा विद्यामेता, योगविधिं च कृत्स्न | ब्रह्मप्राप्तो विरजोऽभृद्‌ विग्ृत्युः, अन्योऽप्येव यो विद्‌ श्रध्यात्ममेव ॥ (कूड) यमराज से वेद्ांत-विद्या, आत्म-विद्या, को, तथा समग्र योग-विधि को पाकर नचिकेता ने ज्य का अनुभव किया, रजस्‌ से, राग-द्वेष के मल से, चित्त उस का शुद्ध हुआ, सत्यु के पार पहुँचा। जो कोई इसी रीति से दद्‌ निश्चय करेगा, थस का सेवन करेगा, कठिन यस-नियसों का पालन करेगा, यमराज मृत्यु का संह देख कर उस का सामना करेगा, डर कर सागेगा नहीं, सत्यु से प्रभोत्तर करेगा, श्रौर उत्तर की खोज में दुनिया के सब लोभ लालच छोड़ने को तय्यार होगा, उस को भी नचिकेता के ऐसा आत्मा का, परमात्मा करा, जीव श्नौर ब्रह्य की एकता का, “दर्शन”, ''सम्यर्दर्शन”, होगा, ओर अमरता का लाभ होगा 1१ १ इख स्वध में ्रागे चलकर हञ्ञंवमं नाम के यूरोपियन विद्धान्‌ की पुस्तक, £হী साइकालोनी आफ़ फ़िलोसोफ़र्स” ( सं १६२६ ) की चर्चा की जायगी, जिस में उन्होंने यूरोप के तीस नामी फल्रसक्नी भर्थाव्‌ दाशनिकां की नैसगिंक प्रकृतियों और जीवनियें की परीक्षा समीक्ष की है, और इस की गवेपणा की है कि “किन देतुओं से वे 'फ़िल्लोसोफ़ी' की दर्शन की ओर জুন ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now