सूर साहित्य का सांस्कृतिक अध्ययन | Soor Sahitya Ka Sanskritik Adyyan

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Soor Sahitya Ka Sanskritik Adyyan by प्रेमनारायण टंडन - Premnarayan Tandon

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| १५ | मृग--्ज्यो मृग नाभि-कमल निज श्रनुदिन निकट रहत नहिं जानत १ । मृगा- जगत जननी करी बारी, मृगा चरि चरि जर्ई°>। ह रिनि--ह रन बराह, मोर, चतक, पिक जरत जीव बेहालऽ3 । कूकर--भजन बिनु कूकर सूकर जेसौ*४ । स्वान--वुषे होत न स्वान ठि ज्यौ, पचि पचि बेद मरे७५ | केह रि करि केहरि, कोकिल कल नानी, ससि मुख प्रमा धरी | सिह-- क्य वर, गय वर, सिह) हंस वर, खग मृग कहं हम लीन | सवर--सवर कों कहा श्ररगजा-नेपन, मरकट भूषन श्रंग*८ | गदभ हय गय॑द उतरि कहा गदभ चदि ঘার্তীওৎ | कुजर-- दा कख्नामय कुंजर टेस्थो, रह्यो नहीं बल थाको< * | गज-- कृपा करी गज-काज, गस्ढ़ तजि धाइ गए जब< १ | गयंद--रजनीमु बन तँ बने श्रावत, भावति मंद गय॑द्‌ की लटकनि८ * | गय--हय बर, गय बर, सिह, हंस बर, खग, म्रग कर हम लीन < 3 | नाग-- गेवे वृषभ, तुरग श्रु नाग । स्यार শ্রীল) নিলি बोले काग<४ | हाथिनि--कहू घट्पद केसे खेयतु है, हाथिनि के सँग गाँडे८५ | गाइ--माधों जू यह मेरी इक गाइ<९ | गो--रॉभति गो खरिकनि में, बछुरा हित धाइ<० | धेनु--चरति घेनु अपने अपने रंग, अ्रतिहिं सघन बन चारौ<< | सुरभी--पसु मोहें, सुरभी बिथकित, तृन दंतनि टेकि रहत<९ | जंबुक--समुझत नाहिं दीन बदुख कोऊ, हरि भख जंबुक पानिह्ि१९ | व या न ~ ~ ~ --- = - - ~ -- ~~ + -+ न -=-~ - ----- ~ ~ ~~~ , '* ~-----~ ष वि पी ৯5 ০০০ ७१, सा० १-४६ । ७२, सा० ६-६०। ७२. सा० ६१४ | ७४. सा २-१४। ७५. सा० ३७३० । ७६, सा० ६-६३। ७७, सा० १५४५१ | ७८. सा० १-१२३२२। ७६, सा० १-१६६। ८०. सा० १०११३। ८१. सा० ४८६ । ८२. साऽ ६१८ নেই, सा० १५५६१ । ८४, सा० १-२८६ | ८५. सा० २३६६४ | ८६. सा० १-४१ | ८७, सा० १०-२०२। ८८. सार ६११ ८8. सी० ६२० | ६०, सा० ४१६६ ।




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