सूर साहित्य का सांस्कृतिक अध्ययन | Soor Sahitya Ka Sanskritik Adyyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| १५ |
मृग--्ज्यो मृग नाभि-कमल निज श्रनुदिन निकट रहत नहिं जानत १ ।
मृगा- जगत जननी करी बारी, मृगा चरि चरि जर्ई°>।
ह रिनि--ह रन बराह, मोर, चतक, पिक जरत जीव बेहालऽ3 ।
कूकर--भजन बिनु कूकर सूकर जेसौ*४ ।
स्वान--वुषे होत न स्वान ठि ज्यौ, पचि पचि बेद मरे७५ |
केह रि करि केहरि, कोकिल कल नानी, ससि मुख प्रमा धरी |
सिह-- क्य वर, गय वर, सिह) हंस वर, खग मृग कहं हम लीन |
सवर--सवर कों कहा श्ररगजा-नेपन, मरकट भूषन श्रंग*८ |
गदभ हय गय॑द उतरि कहा गदभ चदि ঘার্তীওৎ |
कुजर-- दा कख्नामय कुंजर टेस्थो, रह्यो नहीं बल थाको< * |
गज-- कृपा करी गज-काज, गस्ढ़ तजि धाइ गए जब< १ |
गयंद--रजनीमु बन तँ बने श्रावत, भावति मंद गय॑द् की लटकनि८ * |
गय--हय बर, गय बर, सिह, हंस बर, खग, म्रग कर हम लीन < 3 |
नाग-- गेवे वृषभ, तुरग श्रु नाग । स्यार শ্রীল) নিলি बोले काग<४ |
हाथिनि--कहू घट्पद केसे खेयतु है, हाथिनि के सँग गाँडे८५ |
गाइ--माधों जू यह मेरी इक गाइ<९ |
गो--रॉभति गो खरिकनि में, बछुरा हित धाइ<० |
धेनु--चरति घेनु अपने अपने रंग, अ्रतिहिं सघन बन चारौ<< |
सुरभी--पसु मोहें, सुरभी बिथकित, तृन दंतनि टेकि रहत<९ |
जंबुक--समुझत नाहिं दीन बदुख कोऊ, हरि भख जंबुक पानिह्ि१९ |
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७१, सा० १-४६ । ७२, सा० ६-६०।
७२. सा० ६१४ | ७४. सा २-१४।
७५. सा० ३७३० । ७६, सा० ६-६३।
७७, सा० १५४५१ | ७८. सा० १-१२३२२।
७६, सा० १-१६६। ८०. सा० १०११३।
८१. सा० ४८६ । ८२. साऽ ६१८
নেই, सा० १५५६१ । ८४, सा० १-२८६ |
८५. सा० २३६६४ | ८६. सा० १-४१ |
८७, सा० १०-२०२। ८८. सार ६११
८8. सी० ६२० | ६०, सा० ४१६६ ।
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