श्रीउपासनात्रयसिद्धांत | Shriupanayastrayasidhant

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shriupanayastrayasidhant by खेमराज श्री कृष्णदास - Khemraj Shri Krishnadas

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about खेमराज श्री कृष्णदास - Khemraj Shri Krishnadas

Add Infomation AboutKhemraj Shri Krishnadas

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
বা नारायणोपासनासिद्धान्त । (१५) अथ-असुरोंके अशी राजाओके समूहे इःसित्त भूमि বত नाश कनेक च्य कलते शेत आर कण्ण केर अवतार छेंगे जिनका मार्ग नहीं जानाजाय वृह अपनी महिमाको प्रगद करनेवाले कर्म करेंगे। हे शिष्य ! महाभारतम भी रेसादी कहा ६ ॥ यथा- | § डम भिषक সি ডি श न हे ক অ चापि केशो हारिरुच्चजद्ठे शुकुमेकमपरं चापि क्ृष्णम ॥ तौ चापि केशाव्विशतां यदूनां टे चयौ रोहिणी देवकीं च॥५०॥ अथ-जव्‌ सव देवताओं भगवानका कृष्णावततार होनेके ठ्य पाथना किया तव भगवानने दो बाट एक सफेद एक काटा उखाडे वद दोनों वाल यादवोंके लद रोहिणी आर देवकीमें प्रवेश करगयं । जो भगवाच्का श्वेत केश रहा उससे सक्तपण उत्पन्न इये दूसरे श्याम वणं वारे केसे केशी वधकारी श्रीकृष्णचन्द्र ए । एनः त्रह्मषएुराणे ७२ अध्याये ॥ 8 एवं ससतूयमानस्तु भगवान परयश्वरः ॥ গাভী : केशौ सितक्रष्णे तमाः उज्जहारात्मनः केशौ सितकरष्णो द्विजोत्तमाः ॥ कृ हं টি रा মর [ ১ त्‌ घ्‌ | उवाच च छरानेता मत्केशौ वसुधातले ॥ 9 ~ =, हारि - हे अवतीय्य युवो सारं द्ैशहानि करिष्यतः देव र > त्‌ वषुदेवस्य या पत्नी देवकी देवतोपमा ॥ तस्यथायमएमो गर्भों मत्केशो सवितामराः । 1 ¢ ध নু রর अवताय्यं च तताय कंस बातयिता वि ॥ अथ- देवतारओँके स्तुति करनेपर भगवान्‌ परमेश्वर निजात्मक सवेत, ष्ण दो केश उखाडकर बोले कि है देव ! सब मेरा दोनों केश पृथिवीततलूमें अवतार लेकर प्रथिवीभारको दूर करेंगे । वसुदेवके ख्री जो देवतुल्य देवकीह तिनके आठवां गर्भ यह मेरा केश होगा तहां अवतार लेकर यह कंसको मारेंगे | चौथा नर नारायण कृष्ण अन इयं हं सो चोये स्कंधमे प्रस्तिद्ध हं। यथा-प्रथमाध्याये भा०-- ताविमौ वै मगवतो हरेर्शाविहागतो ॥ भारव्ययाय चं भुवः कृष्णो यड्क्ुषद्रहौ ॥ ५१॥ अर्थ-जव देवताओंने प्रार्थनाकरी तब नर नारायण गधमादन पर्तको चठ गये सो उन्ही दोनाने भूमिका भार उतारनेके लिये इहां अवतार लिये इनम नरके अंशसे तो कुछ कुलमें अर्जुन हुये और नारायणके আহা यहुकुलमें कृष्ण रे सोह वात आदिं कवि वारफीकिनीने उत्तर काण्डकरे ५३ स्ने हाहे। यथा- পিচ [~ णी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now