बेला फूले आधी रात | Bela Foole Adhi Raat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ १३८ भैरी नाक में नकेल पड़ जाय और कोई मुझे जिधर को होंके मैं उधर टौ चल यह मुझे आरम्भ से अ्रप्रिय रहा है । रस और आनन्द मेरे लिए सदेव पहली शर्त रही है। इसी रत और आनन्द का कुछ उपचार वैला फूले आधी रात! में मिलेगा । खतन्‍्त्र भारत में देश के अनेक प्रान्त श्र जनपद अपने-अपने लोक- साहित्य के संरक्षण की ओर अग्रसर होंगे, इसका मुझे विश्वास है । लोकमीतं-यात्रा में मुझे सदेव जाने-अनबाने मित्रों का सहयोग और आतिध्य प्राप्त हुआ है । उनके नाम मेरे हृदय पर खुरे हृए हैं। उन्हें, मैं वहीं सुरक्षित रखना चाहता हूँ। यहाँ उनकी चर्चा नहीं करू गा। * मित्रवर डा० सुनीतिकुमार चादु््या, जिनसे सर्वप्रथम सन्‌ १६३२ में मेरी भेट हुई, और डिन्हें मैं भाषा-विज्ञन के आचाय से कहीं अधिक एक साहित्या- चार्य के रुप में देखता आया हूँ, इन्हों दिनों दिल्‍लीआये वो वार्तालाप करते हुए गत वष के अनेक पूष्ठों को उन्होंने एक ही मुसकान से छू दिया । मैंने देखा कि उनका शरीर पहले से कुछ छठ गया है; पर उनका मानस पहले से कही श्रधिक विशाल हो गया टै । धेला फूले आ्राधी राठ! के आमुखत के लिए मैं उनका ऋणी हूँ, जिसका কিস জবান इससे पूं भाडनं सियु मे प्रकाशित हुआ था। भारतीय कला के मर्मश भी नानालाल चमनलाल मेहता, जिन्हें 'वेला फूले आधी रात समर्पित की जा रही है, लोक-साहित्य के गिने-चुने उन्नायफो में से एक हैं। ২০০১ ইবন रोड, नई दिल्ली ६ श्रक्‍्दूबए, १६४८ --देषेन्द्र सत्याथी




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