उत्तराध्ययन चयनिका | Uttaradhyayan Chayanika
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कमलचन्द सोगाणी- Kamalchand Sogani
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)के फल रस और वर्ण में तो मनोहर होते हैं, किन्तु वे खाने पर जीवन
को समाप्त कर देते हैं (92) ।
सर्दियों के मानव-अनुभव ने हमें सिखाया है कि भोगमय
जीवन जीने से मनुष्य तनाद-मुन्त नही टो सकता है । भोगेच्छाश्रों
से उत्पन्न मानसिक तनाव को मिटाने के लिए मनृष्य जितना-जितना
भोगों का सहारा लेगा, उतना-उतना मानसिक तनाव गहरी जड़ें
पकडता जायेगा । मानसिक तनाव कौ उपस्थिति म मनुष्य जीवन
गी गह राशयो की भोर नहीं मूड सकेगा भ्रौर छिद्धला जीवन जीने
को ही सब कुछ समभत्ता रहेगा । उत्तराध्ययंन का कहना है कि जो
मनुष्य शरीर में, कोति में तथा रूप में श्रासकत होते है, वे दुःखों से
घिरे रहते हैं (31) । मनुष्यों का जो कुछ भी कायिक और मानसिक
दुःख है, वह विषयों में भ्रत्यन्त आसक्ति से उत्पन्न होता है (91) ।
जो रूपों (भोगो) में तीत्र श्रासक्ति रखता है, वह विनाश को प्राप्त
होता है (94) ! इस तरह इन्द्रियो के व्रिपय ग्रौर मन के विपय
भ्रासक्त मनुष्य के लिए दुःश्त का कारण होते हैं (96) । यह दुःख मान-
सिक तनाव के कारण एत्पन्न होता है ।
भांगेच्छाओं से उत्पन्न मानसिक तनावात्मक दु:खों को ।मटाने
के लिए भोगेच्छाओों को मिटाना जरूरी है। इसके लिए संयममय
जीवन आवश्यक है । उत्तराध्ययन का शिक्षण है कि व्यक्ति चाहे
ग्राम अथवा नगर में रहे, किन्तु वहाँ उसे सयत श्रवस्था में हो रहना
चाहिए (44) । ज॑से उज्जड बेल वाहन को तोड देते हैं, वेसे ही संयम
में दुबंछ व्यक्ति जीवन-यान को छिन्न-भिन्न कर देते हैँ (74) । जो
विषयों से नहीं चिपकते हैं, वे अविलासी व्यक्ति मानसिक तनावरूपी
मलिनता से छुटकारा पा जाते हैं (73,71) 1 जेसे सूखा गोला दिवार
चयनिका ] ¢
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