वैशेषिक दर्शन | Vaesheshik Darshan

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Vaesheshik Darshan  by शंकरदत्त शर्मा - Shankardatt Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वेशेपिक दर्शन | ( ५) रूप ससगंन्धस्पशा:संख्याः परिमाणानिप्रथक्‌- ल॑ संयोगविभागों परलापरले बुद्धयः सुख दुः्खे इच्छाद पो प्रयलाश्र गुणाःताक्षा . झर्थ--रूप, रस, गन्ध, स्पशे, संख्या, परिमाण, पृथकर्त्व, रूयोग, विभाग, परत्व अपसत्व, बुद्धि, खुख, दुःख, इच्छा,द्वप, प्रयत्न शुर, वत्व, स्नेह, संस्कार, धमं ऋघर्म और शब्द । इनमें भ्रयस्न तक १७ सन्न मेँ चत्तलभ्ये शथे है, शौर शेप ७ “च” से घतलाये हें । ये चौवीस्त गुण नच द्रव्या मे रहते हं ! इनमेंसे रूप, रस. गल्ध, स्पर्श संख्या 'परिमाण, पृथकृत्त्य..रूयोश, वि गाग, पग्त्य, शपस्व, गुख्त्व और অবজ্ঞা ये विशेपतया विख्यात श॒ण हैं । अश्न+-रूप क्िलकों कहते हैँ ? उन्तर--जो शंख से 'दीखे उसको रूप कहते-हैं | वह काला, पीछा, श्वेत और हश आदि नाना-प्कार का है। प्रश्न--रस किसको कहते हैं। उत्तर--जिस गुणका रसना इन्दरियसे श्रयुभव दो वद रस-है यथा- खट्दा, मीठा और खाय आदि । प्रश्न--गन्ध किसको कहते दें ? उत्तर--जिस शुण का नाक से अनुभव हो वहयुण गन्ध्र है। वह दो । प्रकार का है १--झछुगन्ध और २--हुगंन्ध । इन--सुपर्श किस को कहते हें ? उच्चर--जिस का त्वंचा फे द्वारा शुभद कियाजावे | परन्द स्पश गर्म और सर्द से >ितान्‍त पृथक होता है । संयोग होनेपर शीच उष्ण पतीत दोता है ক ৯ श्रथ्न~-संख्या किस को कहते हैं ? उचष्तर--एक से लेकर अर्दों आदि ठक संख्या कहाती है । प्रश्च--शुरुत्व किस को दहहंते हे ? उन्तर--जिस के कारण वस्तु भुमिपर शिरती.. हैं. वही गुरत्व-ह.. `. . आह शुरुत्प एूचिदी की आकर्षण शक्ति से .उत्पन्न- होता है। :मिंवतक एक व्रस्तु-का दुसरी चस्तु के साथ खंबोस, ,रदता दें কী




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