भारतीय नव जागरण का इतिहास | Bharatiye Nav Jagran Ka Ithas

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Bharatiye Nav Jagran Ka Ithas by हरिभाऊ उपाध्याय - Haribhau Upadhyaya

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हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन के भवरासा में सन १८९२ ई० में हुआ।

विश्वविद्यालयीन शिक्षा अन्यतम न होते हुए भी साहित्यसर्जना की प्रतिभा जन्मजात थी और इनके सार्वजनिक जीवन का आरंभ "औदुंबर" मासिक पत्र के प्रकाशन के माध्यम से साहित्यसेवा द्वारा ही हुआ। सन्‌ १९११ में पढ़ाई के साथ इन्होंने इस पत्र का संपादन भी किया। सन्‌ १९१५ में वे पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए और "सरस्वती' में काम किया। इसके बाद श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के "प्रताप", "हिंदी नवजीवन", "प्रभा", आदि के संपादन में योगदान किया। सन्‌ १९२२ में स्वयं "मालव मयूर" नामक पत्र प्रकाशित करने की योजना बनाई किंतु पत्र अध

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राष्ट्रीयता की প্রন 2७ मुसीबत ओर बढ़ा दी | सन्‌ १८०३ में बम्बई में दुर्मिन्ष पड़ा था और মির उसके बाद सन्‌ #८३७ में मद्रास में । है हे इनके अतिरिक्त पांच ओर दुभि इस गोच 'पड़े। इनमें १५ लाख आदमी मरे । इनके बाद सन्‌ হল £ में फिर उत्तर-पश्चिमी भाग में अ्रकाल पढ़ा | इसमें भी काफी नुक्तान हुआ । लेकिन पहले की तरह इस बार भाग्य को दोप देकर जनता चुप- चाप नहीं रही | इस बार उसने यह अनुमव किया कि ये दुर्भिन्न ईश्वर कृत नहीं, मनुष्य-क्षत हैं। सन्‌ १८७२ से लेकर सन्‌ १८७६ तक बंगाल और विहार में दुर्भिज्ष पड़ा और जनता में दाह्मकार मच गया । इस बार लोगों की यह भावना ओर तीव हुई कि हसके लिए सरकार दोपी है ओर लोगों म॑ असनन्‍्तोप ओर कटुता को भावना अधिक तीम टगः | जब एक ओर ये इुमिक्ष जनता को परेशान कर रहे थे, तत्र दूसरों ओर सन्‌ १८७७ में दिल्‍ली में दरबार हुआ जिसमें पानी की तरह पंसा बहाया गया, ओर महारानी विक्टोरिया को सम्राज्ञी की पदवी से विभूषित किया गया। लोगों के मन पर इसका अच्छा असर नहीं हुआ | यदि वह पसा अकाल- पीड़ितों की सहायता में खर्च किया जाता तो हज़ारों की जाने बच जातीं लेकिन सरकार का ध्यान इस तरफ कह्मां था ? 'जनत्र रोम जल रहा था, तब नीरो ब्रांसुरी बजा रद्द था? वाली कहावत के अनुसार सरकार निश्चिन्त थी | उसे लोगों की कुछ परवाह नहों थी । लाई लियन के शासनकाल में दूसरा अफ़गान-युद्ध प्रारम्भ हुआ । अफ़गान युद्ध ओर अस्ब- इसमे भी काफी पैसा खचे हुआ झोर यह भी कानून लोगों की आलोचना का विपय হনা। लोग इतना तो जानने लगे थे कि उनके पैसे से दूसरे देश को गुलाम इनाने का प्रयत्न किया जारहा है लेकिन सरकार को इसकी चिन्ता कहाँ थी ? उसने अस्त्र-कानून भी पास कर डाला जिसके अनुसार ब्रिना लाइसेंन्स अन्दूक, तमत्चा ओर तलवार रखने का निषेध कर दिया गया | विशेषता यह थी कि यह्‌ निपेधाज्ञा केवल भारतीयों के लिए थी । परिस्थिति यह थी कि एक ओर जनता में इन सब कारणों से अमम्तोप 45




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