स्त्रियों की स्थिति | Striyon Ki Sithiti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारत में ख्री-जाति का भूत, वर्तमान तथा भविष्यत्‌ ७ डायु का विवाह भी बाल-विवाह समझा जाता है । इसलिये वेद ने भायु की कोई सीमा नहीं बाँधी। परंतु एक नियम का विधान कर दिया है। यह नियम जिस समाज में ढागू होगा, उसमें बाल-विवाद्द की प्रथा नहीं रद सकती । वैदिक काल में आत्मिक विकास की दरृुष्टि से भी ख्रियाँ पुरुषों के साथ एक ही क्षेत्र में विचरण करती थीं। ब्रददारण्यक में याज्ञवल्क्य तथा मैत्रेयी का संवाद आता है । पाज्ञवल्क्य अपनी संपत्ति तथा घर आदि छोड़कर स्वयं जंगछ में जाकर अध्यात्म- विद्या में अपना समय देना चाहते हैं, वह मैत्रेयी से अपना विचार कहते हैं । मैत्रेयी कहती है, यदि संसार का सारा घन एकत्रित करके उसको दे दिया जाय, तब भी वह घर रहने को तैयार न होगी । उसका यह विचार जानकर याज्ञवल्क्य मैत्रेयी को अपने साथ ले जाने से पूर्व आध्यात्मिक उपदेश देते हैं । इस ऊँचे उपदेशा को जिस सरढ्ता के साथ मैत्रेयी हृदयंगंम कर लेती है, उससे मैत्रेयी के मानसिक तथा आत्मिक विकास की ऊँची अवस्था पर पर्याप्त अ्रकारा. पढ़ता है । आध्यात्मिक ज्ञान रखने के साथ-ही-साथ धार्मिक क्षेत्र में भी ख्री का पुरुष के बराबर ही स्थान था । कोई यज्ञ ख्री के भाग के विना पूरा न समझा जाता था। रामचंद्रजी के राज्याभिषेक पर, सीता के परित्याग के पश्चात्‌, जव राजसूय-यज्ञ होने छगा; तो सीताजी का होना अत्यावश्यक समझा गया । उस समय सीताजी की स्वर्ण-मूर्ति को उनके स्थान पर रखकर यज्ञ की पूर्ति की गई




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