रेगिस्तान से महानगर तक | Registan Se Mahanagar Tak

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Registan Se Mahanagar Tak by रामदेव आचार्य - Ramdev Aacharya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामदेव आचार्य - Ramdev Aacharya

Add Infomation AboutRamdev Aacharya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
হী পি আহা चलकर “विद्याल नगरी” सहसा “प्रजनवी मुल्क मे परिणत हौ जाती है, और “वेइलाज दर्दे-दिल'” कविता सीम पैदा कग्ने लगती है, किन्तु इतने में ही कवि एक पंक्ति बेनर की तरह सामने ले ग्राता है :-- “म ऐसी निकम्मी बातें क्यों सोचता हूँ? नाटकीय परिस्थिति सहज हो उठतो है । थो लोग काम वी बातें सोचते है, उनसे प्रायने को प्रतगाने को सोश्च करते हए वह्‌ कहता हैं :-- मं जानवर को जानवर कहता हूँ, श्रौर जानवर की दुलत्ती खाकर दर्दे>दिल की दवा खोजता हैँ । जब कभी अपमे को दूसरा रंग देता हूँ হী ইং আহা নাবী হী আবী ই)? उसे अदा' के साथ 'वागी' शब्द रखने में कोई कठिनाई नहीं हुई, पर जो व्यक्ति उसके इस विचित्र स्वभाव से परिचित नहीं होगा, वह परेशानी में पड़ जायेगा । विडम्बनापूर्ण ध्यिति की सामेद्धारी करने मे उति संकोच हमा त्र? भ्राज हर क्वि को इन बातों पर विचार करने की जरूरत होती है। इस संग्रह की बहुत-सी कवि- ताझों में कवि ने श्रन्तर्सघर्ष करके, रूमानियत के घेरे को तोड़ते हुए, याकि उससे श्रयने को नये स्तर पर जोड़ते हुए, ग्रात्म-परिष्कार किया है। उसकी “লঘু कवि ক নান? ऐसी ही कदिता है, जिसमें “कविता को लेकर किर कवि ने अपनी विप्रम मनोंदशा का, 'वेश्या' और “छिनाल झीरत” के प्रतीक अपनाइर, नंगी भाया में इज़हार किया है। ये पंक्तियां द्रष्व्ब्य हैं :-.. अगर तुम कलम कहा प्रयोग জীউ হী নর য়ন, ८ £ ५ ॥ 9 | च 0 ६) ¢= শা ৯১




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now