पूर्णता की ओर | Poornata Ki Or
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
87
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निरन्तर बनी रहने वाली इस नुटि का कारण
प्रात्मानुभव के 'रूप' और “सत्त्व' (८०८८४) मेँ
अन्तर न पहचान पाना है। “आकार” किसी साह-
सिक कर्म या क्रियांशीलन में निहित प्रयत्त और
श्रम के समान है तो 'सत्त्व” उपलब्धि का तुष्टि-तत्त्व
है जो प्रक्रिया में अ्रद्धष्ट रहते हुए भी भ्रन्तव्यापी
है। यह सत्य है कि मानव रोटी के लिए सद्ुष
करता है श्रोर उसका अ्रधिकांश जीवन इसी के
उपार्जन के उपायों की खोज में व्यतीत हो जाता
है, लेकिन दुर्भाग्य से उदर-पृत्ति की इस आबह्य-
कतां को भ्वान्तिव्च जीवन में उपलभ्य भ्रत्यावर्यक
साध्य समभ लिया जाताहै। जीविकोपाजंन का
प्रयोजन इससे सर्व॑था भिन्नहै। जीवन यापन के
योग्यो जाने का सन्तोष एक विलक्षण प्रकारका
सन्तोष हौ जाता है 1 भोजन, वस्त्र, भ्रावास तथा
प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपरिहार्य समझी जाने
वाली जीवन की श्रन्यान्य सुविधाशों की खोज का
यही (वुष्टि-प्राप्ति) उद्देश्य है। लेकिन जब तक
'रूप' में 'सत्त्वः को नहीं ढूँढा जायगा तब तक
जीवन सवदा परिस्थितियों श्र दुर्भाग्य का निराशा-
पूर्ण शौर कभी न समाप्त होने वाला অভ হী
बना रहेगा। विचित्र कठिनाइयों का बोध मानव-
चेतना के धरातल पर नहीं होता, परिणामतः वह
प्राजीवन विषमताओों से जुझता तथा दुःख भोगता
रहता है। जीवन की प्रक्रियाओं में श्रन्तहित
वराशय' की खोज दर्शन है और अपने जीवन में
दर्शन को कार्यान्वित कर लेना योगाम्यास है।
(अठारह )
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