विवेकानन्द साहित्य [खण्ड ६] | Vivekanand Sahitya [Khand 6]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
452
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१५ दार्ता एड सझाप
शिप्य--अच्छा महाराज, माना कि धन आ गया और आपने শী হল শাম
का अनुप्ठान कर दिया। फिर इसके पूर्व भी तो कितने ही महापुरुष कितने सत्कायों
का मनुष्टान कर गये, वे सव (सत्वार्य) अब कहाँ हैं! निश्चय है कि आपके
धारा प्रतिष्ठित कार्य फी भी भविष्य में ऐसी ही दशा होगो। तब ऐसे उद्यम को
आवश्यकता ह क्या ?
स्वामी जी---मविष्य में क्या होगा, इसी चिन्ता में जो सर्वदा रहता है, उससे
कोई कार्य नही हो सवता। इसलिए जिस वत्त कौ तू सत्य ममसत्ता रै, उमे अभौ
कर डाल, भविष्य में क्या होगा, कया नहीं होगा, उसकी चिन्ता करने की
बया आवश्यकता ? तनिक सा तो जीवन है, यदि इसमे भी किसी कार्य के
लाभालाभ का विचार करते रहे तो क्या उस कार्य का होना सम्भव है ? फलाफलू
देनेवाला तो एकमात्र ईश्वर है। जैसा उचित होगा वैसा ही वह् करेगा) इस
विपय में पडने से तेरा क्या प्रयोजन है? तू उसकी चिन्ता न कर, अपना
काम किये जा।
वाते करते करते गाड़ कोठी पर आ पहुँची। कलकत्ते से बहुत से लोग
स्वामी जी के दर्शन के लिए वहाँ आये हुए थे। स्वामी जी गाडी से उतरकर
कमरे में जा चैठे और सबसे वात्तचीत करने लगे। स्वामी जी के अग्रेज' शिष्य
गुडविन साहव मूतिमान सेका की भाँति पास ही खडे थे। इनके साथ श्षिष्य का
परिचय पहले ही हो चुका था, इसीलिए द्विष्य भी उनके पास ही बैठ गया और
दोनो मिलकर स्वामी जी के विषय में नाना प्रकार का वार्तालाप करने छो।
सन्व्या होने पर स्वामी जी ने श्षिप्प को बुलाकर पूछा, “क्या तूने
कठोपनिषद् कण्ठस्य कर् लिया है?
शिष्य---नही महाराज, मैंने शकर-भाष्य के सहित उसका पाठ मात्र किया
है।
स्वामी जी--उपनिपदो मे ऐसा सुन्दर ग्रन्थ मौर कोई नही! मै चाहता
हूँ, तू इसे कण्ठस्थ कर छे ) नचिकेता के समान श्रद्धा, साहस, विचार गौर वैराग्य
अपने जीवन मे लाने की चेष्टा कर, केवर पठने से क्या होगा ?
शिष्य---ऐसी कृपा कीजिए कि दास की भी उस सवका अनुभव हो जाय।
स्वामी जी--छुमने तो श्री रामकृष्ण का कथन सुना है? वे कहा करते
थे कि करपाखूपी वायु सर्वदा चलती रहती है, तु पारु उठा क्यो नही देता ?
बेटे, कया कोई किसीके लिए कुछ कर सकता है ? अपना भाग्य अपने ही हाथ मे
४ वीज ही की शक्ति से वृक्ष होता है। जरूवायु तो उसके सहायक मात्र होते
1
User Reviews
No Reviews | Add Yours...