कु कुम के पगलिये | Ku Kum Ke Pagliye
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
196
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“आप दोनो पूरा विश्वास रखें कि आपने अपनी बेटी को इतना मजबूत बनाया है
जो किसी भी परिस्थिति के सामते कमजोर नही होगी श्र किसी भी सघपं से नही डरेगी।
यह् र बहुत ही नम्नतापूर्वक कह रही ऋ কর ৪৩5৬৪ ৪ ৪৪৯ ৪ &
“लेकिन मैं तो भ्रुल ही गई श्रापका स्वागत करना । मैं आपके लिये शासन लग्राती
हं ग्रौर सभी को बुलाती ह 11118717 171111,
मजुलाज्योही उठने लगी तो देखा वह उठी कहाँ है ” वह तो अ्पती सासूजी के
पास श्रपनी शय्या पर ही सोई हुई है और वहाँ उसके माता-पिता भी नही थे । तब उसको
महसूस हुआ कि वह सपना देख रही थी श्रौर सपना भी उपाकालीन घडियो मे आया था
जिसे बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है ।
वह उठी, नित्य कर्म से निवृत्त हुई तथा सासूजी की शब्या के पास नीचे बैठ गई
ताकि वे उठें तो उनके चरणों मे घोग लगावे | वह इन्तजार कर रही थी कि बाहर से
उसके पति श्रीकान्त की आवाज झाई जिनसे उसका प्रत्यक्ष परिचय होना श्रमी
बाकी था--
“माँ, क्या भ्रभी उठी नही हो ? मुझे विलम्ब हो रहा है न ?”
मां हडवडाकर उठी श्रौर यह् कहती हई जल्दी से वाहर निकल गई कि मँ अमी
निवट भ्राती हू, तव तक तुम दोनो वात करो ।
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