कु कुम के पगलिये | Ku Kum Ke Pagliye

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Ku Kum Ke Pagliye by आचार्य श्री नानेश - Acharya Shri Nanesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“आप दोनो पूरा विश्वास रखें कि आपने अपनी बेटी को इतना मजबूत बनाया है जो किसी भी परिस्थिति के सामते कमजोर नही होगी श्र किसी भी सघपं से नही डरेगी। यह्‌ र बहुत ही नम्नतापूर्वक कह रही ऋ কর ৪৩5৬৪ ৪ ৪৪৯ ৪ & “लेकिन मैं तो भ्रुल ही गई श्रापका स्वागत करना । मैं आपके लिये शासन लग्राती हं ग्रौर सभी को बुलाती ह 11118717 171111, मजुलाज्योही उठने लगी तो देखा वह उठी कहाँ है ” वह तो अ्पती सासूजी के पास श्रपनी शय्या पर ही सोई हुई है और वहाँ उसके माता-पिता भी नही थे । तब उसको महसूस हुआ कि वह सपना देख रही थी श्रौर सपना भी उपाकालीन घडियो मे आया था जिसे बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है । वह उठी, नित्य कर्म से निवृत्त हुई तथा सासूजी की शब्या के पास नीचे बैठ गई ताकि वे उठें तो उनके चरणों मे घोग लगावे | वह इन्तजार कर रही थी कि बाहर से उसके पति श्रीकान्त की आवाज झाई जिनसे उसका प्रत्यक्ष परिचय होना श्रमी बाकी था-- “माँ, क्या भ्रभी उठी नही हो ? मुझे विलम्ब हो रहा है न ?” मां हडवडाकर उठी श्रौर यह्‌ कहती हई जल्दी से वाहर निकल गई कि मँ अमी निवट भ्राती हू, तव तक तुम दोनो वात करो ।




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