वैदिक रहस्य द्वितीय भाग | Vaedik Rahsya Bhag 2

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Vaedik Rahsya Bhag 2 by शिवशंकर शर्मा - Shivshankar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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টা गाना হ্যা को स [নি उंपलयाध्द जुमनसयथाना शा था गच्जात ना ০৮০৫১ प्रतुदा दासः || अख? | ७।३३। १४॥ यक्ता नाम सत्र है । अथवा जो सत्य यज्ञ हे वही सत्र हैं। सम्पूण प्रजाओं के हितसाधक उपायों के बनाने के “302 लिये जो आजुघान हैं वही महासन्न है। कुम्भू-वासतीवर लश अत सुन्दर उत्तम २ जो सते क ज्राम नगर हैं वही यहां छुम्म हैं । जेसे कुम्भ में जल स्थिर रहता है पने पर मनुष्य स्थिर होजाता है। अतः इस कुण्ध का नाप वासतीवर रखा है | भान--याननीय | जिसका सम्पात सब कोई करे। मापने- हारा, परीक्षक इत्यादि | अथ मन्त्राथ--(सज्चै +ह+जातौ) यह मसिद्ध बात है कि ज़ब वहत सम्मति से सत्र में दीक्षित = ७, अ, तिह और (नमामि; + इपिता) सत्कार से जव अभिल्ापिद মদ „4.4 ~ प




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