भारतीय अर्थ - शास्त्र | Bhartiya Arth-shastra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतीय झथे-शाख्र का विषय ३ ऊपर घन के जो उदाहरण दिए गए हैं वे भौतिक पदार्थों के हैं । उनके अतिरिक्त अ-भौतिक धन भी होता है। एक आदमी दूसरे की किसी की सेवा करता है यह उपयोगी तो है ही इसके बदले में उसे दूब्य या अन्न झादि अन्य उपयोगी वस्तु भी सिलती है । अतः सकी सेवा घन है । इसी प्रकार किसी व्यवसाय की प्रसिद्धि या ख्याति ८ उपयोगी भी है और विनिमय-साध्य भी है अर्थात्‌ इसका क्रय-विक्रय हो सकता है । इसलिए यह भी अर्थ-शास्त्र सं घन मानी जाती है । ये सपत्ति--संपत्ति के दो भेद वेयक्तिक और राष्ट्रीय संपत्ति किए जा सकते हैं । कौन-कौन सी वस्तुएँ वेयक्तिक संपत्ति मानी जायेँ और कौन सी राष्ट्रीय संपत्ति के झन्तर्गत समझी जाये इस विषय में बहुधा लेखकों में बड़ा मत-भेद होता है तथापि यदद स्पष्ट है कि बहुत- सी चीज़ें वैयक्तिक संपत्ति न होने पर भी राष्ट्रीय संपत्ति में अवश्य सम्मिलित हो जाती हैं जेसे सड़कें पुल नहरें नदी-नाले विविध सार्घ- जनिक मकान शिक्षा-भवन अजायबघर डाक तार रेल आदि । भारतवर्ष की राष्ट्रीय संपत्ति में यहाँ की जनता की संपत्ति के झति- रिक्त भारत-सरकार प्रांतिक सरकार स्थानीय स्वरांज्य-संस्थाओं स्युनिसिपलर और लोकल बोर्डो आम पंचायतों और मंदिर मसजिद घर्मशाला श्रादि संस्थाओं की विविध संपत्ति सम्मिलित होनी चाहिए । इन सबके जोड़ में से वह रक़म घटा देनी चाहिए जो सारतवर्ष में झन्य देशों की लगी हुई है श्रथांत्‌ जो दूसरों को देनी है । कुछ॒अर्थ-शास्त्रियों के मत से तो राष्ट्रीय साहित्य वेज्ञानिक आविष्कार झादि छे अतिरिक्त देश के निवासी भी राष्ट्रीय संपत्ति के हिसाब में सस्मिलित किए जाने चाहिए क्योंकि ये भी अपने देश के घन को बढ़ाते हैं । इससे स्पष्ट है कि देश की कुल राष्ट्रीय संपत्ति का हिसाब लगाना बहुत कठिन एवं विवाद-ग्रस्त है ।




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