श्री भगवती सूत्र पर व्याख्यान भाग 2 | Shree Bhagwati Sutr Par Vyakhyan Bhag 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
462
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about शोभाचन्द्रजी भारिल्ल - Shobhachandraji Bharill
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[२६५ ] चलमाणे चलि
मान लीजिए कोई महिला रोरी वनाना चाष्टती ह ।
रोटी वनाना साध्य है तो उसके लिए साधनों का होना अनि-
चार्य आवश्यक है | चकला, वेलन, आटा, अश्नि आदि रोटी
वनने के साधनों फो सामग्री कहते हैं । यह साधन सामग्री
होगी ठभी रोटी बनेगी । इसी प्रकार प्रत्यक कार्य में साधने
की आवश्यकता है| जैसा मनुप्य का साध्य होगा, वेसा ही
उसे पुरुषार्थ भी करना पड़ता है। उसके अनुकूल ही साधन
करने पड़ते हैं ।
भोत्त रूप साध्य कै लिए सस्यग्द्शन, सम्यकजशञान
ओऔर सस्यक्- चारित्र रूप साथनें। की आवश्यकता है। जैसे
লাভা, আহি, গাহি सामग्री के बिना रोटी नहीं बन सकती,
'डसी प्रकार सम्यग्दशन आदि सासभ्ी के विना मोक्ष की प्राप्ति
नहीं दो सकती । इससे यह साबित होता है कि मोक्ष रूप.
साध्य के साधन सस्यक्-द्शन, सम्यकू-शान और सस्यक्-
আহিল ই।
साध्य के अछुकझूल साधन और साधन के अनुसार
साध्य होता है । ्रन्य जाति का कारण अन्यजातीय कार्य को
उत्पन्न नहीं कर सकता | अगर किसी फो खीर बनानी है तो
डसे दुध, शक्कर और चावल का उपयोग करना होगा । इसके
অন বাহ कोई नमक-मिचे इकट्ठा करने बैठ जाय तो खीर
नहीं वनेगी। तत्पये यद्द हैं कि साध्य के अजुकूल ही साधन
जुटाने चाहिए । ,
साध्य के अनुसार साधन जुटाने के लिए ज्ञान क्री
आवश्यकता है। खीर बनाने वाले को जानना चाहिए कि
खीर के, लिप. दूध, शक्कर आदि की श्राव्यकता हे प्रर
User Reviews
No Reviews | Add Yours...