श्री भगवती सूत्र पर व्याख्यान भाग 2 | Shree Bhagwati Sutr Par Vyakhyan Bhag 2

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Shree Bhagwati Sutr Par Vyakhyan Bhag 2 by शोभाचन्द्रजी भारिल्ल - Shobhachandraji Bharill

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[२६५ ] चलमाणे चलि मान लीजिए कोई महिला रोरी वनाना चाष्टती ह । रोटी वनाना साध्य है तो उसके लिए साधनों का होना अनि- चार्य आवश्यक है | चकला, वेलन, आटा, अश्नि आदि रोटी वनने के साधनों फो सामग्री कहते हैं । यह साधन सामग्री होगी ठभी रोटी बनेगी । इसी प्रकार प्रत्यक कार्य में साधने की आवश्यकता है| जैसा मनुप्य का साध्य होगा, वेसा ही उसे पुरुषार्थ भी करना पड़ता है। उसके अनुकूल ही साधन करने पड़ते हैं । भोत्त रूप साध्य कै लिए सस्यग्द्शन, सम्यकजशञान ओऔर सस्यक्‌- चारित्र रूप साथनें। की आवश्यकता है। जैसे লাভা, আহি, গাহি सामग्री के बिना रोटी नहीं बन सकती, 'डसी प्रकार सम्यग्दशन आदि सासभ्ी के विना मोक्ष की प्राप्ति नहीं दो सकती । इससे यह साबित होता है कि मोक्ष रूप. साध्य के साधन सस्यक्-द्शन, सम्यकू-शान और सस्यक्‌- আহিল ই। साध्य के अछुकझूल साधन और साधन के अनुसार साध्य होता है । ्रन्य जाति का कारण अन्यजातीय कार्य को उत्पन्न नहीं कर सकता | अगर किसी फो खीर बनानी है तो डसे दुध, शक्कर और चावल का उपयोग करना होगा । इसके অন বাহ कोई नमक-मिचे इकट्ठा करने बैठ जाय तो खीर नहीं वनेगी। तत्पये यद्द हैं कि साध्य के अजुकूल ही साधन जुटाने चाहिए । , साध्य के अनुसार साधन जुटाने के लिए ज्ञान क्री आवश्यकता है। खीर बनाने वाले को जानना चाहिए कि खीर के, लिप. दूध, शक्कर आदि की श्राव्यकता हे प्रर




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