प्रगतिवाद : एक समीक्षा | Pragativaad : Ek Samiksha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक समीक्षा २३ माक्सवाद के व्यापक उ्दृश्य की अवदेलना कर साहित्य को अ्रपनी दलगत राजनीति हा श्रस्त्र बना लेना चाहा | माक्ष का तात्य था पूंजीबादी विकृतयो के प्रति विद्रोह और उसके स्थान पर एक स्वस्थ सस्कृति का निर्माण, मगर मास से भी सोगुता अधिक माक्सवादी, उसके अनुयायियो ने प्रगतिवाद को एक व्यापक जीवनदायाी सिद्धान्त नहीं रहने दिया श्रौर उसे एक कट्टर कठमुल्लेपन में परिवर्तित कर दिया | कुछ राजनीतिक तानाशाहों ने कहा कि साहित्यकार को जनता के लिए लिखना चाहिये। जनता का भला उसी नीति भे है जो दल या उसके तानाशाह निर्धारित करते हैं। इसलिए कलाकार को गजनीतिक अनुशासन में ही रहना होगा | जव यह अतुशासन का वन्धन श्राया तो स्पष्ट हैं कि महान्‌ कलाकार जो अ्रयनी आँखे वन्‍्द करना श्रोर अपना दिमाग गिरणी रख देना अपनी कला का अपमान समझते हैं, ग्राखिरकार प्रगतिवादी आन्दोलन से अलग हो गए। फ्रान्स मे रोमा रोलाँ और रूसखमे स्वय गोकां को इस राजनीतिक तानाशाही झा विरोध करना पड़ा | लेकिन कुछ मानसिक गुलाम कलाकार तथा कुछ सस्ती यशलिप्ता वाले मध्यम श्रेणी के कलाकार इस श्रान्दोलन के साथ दो गए, जिनमें न तो इतना आत्मविश्वास था रि वे स्वय अपना মাথা ह ढ़ निकाले, न इतनी निस्पृद्दता थी कि यश के लोभ में अपनी प्रतिभा को राजनीति के द्वाथ बेच देने का लोभ सवरण कर सके | इसका परिणाम यह हुआ कि माक्वादी ( प्रतिवादी ) साहित्यिक विचारधारा में दिनों दिन सकौर्णता, एकांग्रिता, खोखलापन ओर बिक्ृतियाँ आती गई श्रौर नतीजा यह है कि जिस प्रगतिवादी आन्दोलन मे एक दिन यह गोककी, रोलों तक सम्मिलित थे, जिसको




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