भाषा का इतिहास | Bhasha Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषा की उत्पत्ति श्र १ श्रतिभाषा -श्रशिभाषा --श्रादि-भाषा--वैदिक शब्दबहुला । २. झाये-भाषा भाषा । ३ महाभारतकाल की लोकभाषा संस्कृत । ४. पाशिनि के उत्तरकाल की संस्कृत । देवी वाक्‌ के विपय में ऋग्वेद का मन्त्रांद है. १. देवीं वाचमजनयन्त देवा ।८।१००।११॥। भ्र्थात्‌--दैवी वाक्‌ को उत्पन्न किया देवों ने । वागाम्भ्रूणी सुक्त का मन्त्रार्थ है-- २. ताँ मा देवा व्यदधु पुरुत्रा भुरिस्थात्रां भुर्याविश्यर्तीम्‌ ॥। ऋण १०१२४ ३ भ्र्थात--उसको मुभ्-वाक्‌ को देवों ने स्थापित किया । लौगाक्षिगृह्म में पठित मन्त्र है-- ३. देवीं वाचम्‌ उद्यासं दिवाम श्रजस््रां जुष्टाँ देवेश्य । का ० ४३ | भ्रथात--दँवी वाक्‌ को उत्कृष्टता से प्राप्त होऊँ श्रेयस्करी को श्रौर भ्रजस्रा--नित्या को । बृहस्पति भ्रादि देव । बृहस्पति देवता परक मन्त्रार्ध है-- ४. उस्राइव सुर्यो ज्योतिषा महो विद्वेषाम्‌ इज्जनिता ब्रह्मणामसि । ऋण २२३ २। भ्रथात्‌-- हे बृहस्पते विद्वेषाम्‌ ब्रह्मणाम सारे मसत्रों के जनयिता तुम हो । मध्यम स्थानी मरुत देवों के विषय का मन्त्रांद है-- ५. बह्मकृता सारतेना गणेन ॥ ऋण २1३२२ भ्रथात्‌--मन्त्र करने वाले मरुत गण के साथ । ये देवगणा ईश्वर नियमों से प्रेरित सब कत्पों में एक समान नियमों में € टाए2 छिए्रभंट 8 1898 में चलते हुए मन्त्रों को उत्पन्त करते हैं । उसी स्वयम्भु ब्रह्म ते० झ्रा० २।९॥ निरुक्त २1११ को ऋषि प्राप्त कर के लोक- भाषा को भी देते हैं । इस रहस्यमयी विद्या को झ्रणुमात्र भी न समझ कर डा० मंगलदेव शास्त्री जी ने गुरुकुल ज्वालापुर उत्तर प्रदेश के वेदसम्मेलन में १४-४-१९५९ को दिये गए सभापति पद के भाषण पृ० १९ में कुछ उपहास किया है । . जिस व्यक्ति का इस विषय के साथ स्पदं भी नहीं उसे हम क्या कहें । १. भरत नाट्यदास्त्र १७1२८ के भ्राधार पर ।




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