उमड़ती घटाए | Umadtee Ghataye

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Umadtee Ghataye by श्री गुरुदत्त - Shri Gurudatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ह को जानना चाहा, परन्तु देवयानी नै श्रपने रहस्य को भलीर्भाति गुप्त रखा । उसकी सखियो मे से कई तो देवयानी की सम-भ्रायु भौर समाजे उसकी सम-श्रेणी की भी थी । वे जब उसको एकात की ओर मागती हुए देखती, अथवा जब वह उनके पास बेठी-बैंठी खो-सी जाती, तब वे उससे हँसी-ठट्टा करती । उससे प्रायः कहती--'सखि ! किसकी याद सताती है ? किसके लिए सूख-सूख कर तिनका होती जाती हौ ? कौन सौभाग्यशाली ই जो तुमको हमसे छीनकर लिये जा रहा है ?” देवयानी श्रवाक्‌ उनका मुख देखती रहं जाती ्रौर जव कभी वे उसको वहत तग॒करती तो वह्‌ चिन्न होकर कह देती--“तुम्हारा सिर है, जिसकी याद मुझको सता रही है |” वह हंस देती श्रौर प्रायः लता-कुजों में जाकर छुप बैठती भोर स्वप्नों में खो जाती । (२) देवयानी श्रपने माता-पिता की इकलौती सतान थी ! इस कारण भी उसके माता-पिता उसके विवाह के लिये श्रधिक उत्सुक थे । उनके परिवार की परम्परा का चलते रहना देवयानी के विवाह पर ही निर्भर या 1 श्रतएन वे उसके लिये पति ढूँढने में लग गए । उनकी इस विपय में चिन्ता घीरे-घीरे प्रसिद्धि पाने लगी 1 महाराज श्रौर महारानी के सम्बधियो, मित्रो, राज्याधिकारियो ओ्रौर पश्चात्‌ धीरे-धीरे काश्मीर की सम्पूर्ण प्रजा को श्रवगत होने लगा कि राजकुमारी विवाहयोग्य हो गयी है। इस वरखोज की चर्चा काइ्मीर राज्य से वाहर भी पहुँचने लगी। समाचार ब्रह्मावतं, श्रार्यावतं श्रौर देवलोक मे भी पहुँचा । देवलोक में देवधि नारद, जो महाराज देवताम का परम मित्र था, भी इस समाचार को पा गया । इसको पाते ही वह काइमीर चला श्राया | वह स्वयं देवनाम की लड़की की वतंमान श्रवस्या श्रौर योग्यता देखना




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