सुचित्रा | Suchitra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
108
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)16 / सुचित्रा |
(मैं चंचल हूँ। मैं सुदूर का प्यासा हूँ।) कहीं कवि सोमित्र के मन में सुदृर
की यही प्यास तो नहीं बस गई है। कहीं विश्वात्मा ने उसकी ह्ृदतंत्री के तार
तो नहीं छ लिए हैं। यदि हाँ, तो उनका जीवन धन्य हो गया है।
द काल के प्रवाह में दो वर्ष निकल गए। भगवत्-कृपा से मुझे एम०ए० में
प्रथम श्रेणी मिली । सुचित्रा ओर उसकी सहेली पल्लवी दोनों विज्ञान की छात्रा
थीं । सुचित्रा की वनस्पति शास्त्र ओर पल्लवी की रसायन शास्त्र मेँ प्रथम
श्रेणी आई । सुचित्रा कभी-कभी मेरे घर आ जाती थी। माँ उसे बहुत प्यार
करती थीं और पिता के लिए वह उनकी पुत्री ही थी। स्नेह, रक्त-सम्बन्धों का
मोहताज नही होता।
मँ संकोचवश सुचित्रा के “स्थानीय आवास पर कभी नहीं गया । लेकिन
बातचीत में मुझे उसके परिवार की जानकारी मिल गई थी | वह पास के जिले
के एक सम्पन्न, सम्भ्रांत परिवार की कन्या है! आस-पास के इलाके में
मिश्र-परिवार का बड़ा सम्मान हे। काफी बङी तीन चौक की पुरानी हवेली है|
जमींदारी का तो उन्मूलन हो गया लेकिन घर पर काफी काश्त हे । पिता द्ैक्टर
रखकर मजदूरों से खेती कराते हें । मौ ममतामयी कुशल गृहिणी हे । बड़ भाई
जिले की सिविल कोर्ट मे वकालत करते हँ | भाभी अपनी ननद सुचित्रा पर जान
छिड़कती हैं। सुचित्रा के दो छोटे भाई-बहिन जिले के स्कूल में ही पढ़ते हैं।
कुल मिलाकर उसका एक सुखी, भरा-पूरा परिवार है। घर पर फ्रिज, रंगीन
टी०वी० और टेलीफोन सभी आधुनिक सुविधाएँ हैं।
दो साल पहले जिले के राजकीय इंटर कॉलेज की पढ़ाई पूरी करके
सुचित्रा ने यहाँ बी० एस-सी० में दाखिला लिया हे । पल्लवी से तभी परिचय
हुआ था। अब वे दोनों अंतरंग सहेली हैं। दोनों प्रतिभाशालिनी छात्रायें हैं।
पल्लवी के पिता राजकीय सेवा मेँ एडीशनल कलेक्टर के पद पर रँ] सुचित्रा
अपने पिता के परिचित किन्दीं अग्रवाल साहब के यहाँ छत पर दो कमरों का.
छोटा-सा फ्लेट लेकर रहती हे । सुचित्रा के साथ घर का पुराना नौकर हीरा
रहता है। कमरों की सफाई, धुलाई, बाज़ार से सामान लाना और खाना पकाना-सब ¦
कुछ उसी के जिम्मे है। गेहूँ का बोरा, घी और दालें वह सुचित्रा के घर से ले.
आता है। इस प्रकार सब काम व्यवस्थित ढंग से चल रहा है। सुचित्रा जब रात
को देर तक पढ़ती है तो हीरा उसकी कुर्सी के पीछे चुपचाप आकर खड़ा हो
जाता है और सुचित्रा का ध्यान जाने पर कहता है,“अब सो जाओ, बिटिया,
बहुत रात हो गई है।” सुचित्रा उसके हाथ से दूध का गिलास लेकर कहती.
है-“बस थोड़ी-सी देर और | अभी पढ़ने में मन लग रहा है, काका ! तुम जाकर `
सो जाओ।” ০25
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