आर्यमत निराकरण प्रश्नावली | Aaryamat Nirakaran Prashnavali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. भीमसेन शर्मा - Pt. Bhimsen Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)छोंग अपने इंस चद्तोव्याघात,दोष. को अब +भी नहीं .मानोगे ।
और यदि भानोंगे तो. ऋग्वे० भूमिका के .पुराणेतिहास- हेतु पर दर
ताल-क्यों नहीं लगाते! 1... 5 ~ ` ६
६६-जब अथर्व संहिता कांण्ड ११५. । -अनु०.३ मेँ (पुरणं
यज्ञुणा सह ) साफ २ लिखा है.कि धचर्वेद् अपने. ब्राह्मण सहित
उच्िछष्ट नामक ईश्वर से प्रकट हुआ और .इस मन्त्र का ऐसा.ही
अर्थं तुम को भी मानने पड़ा तो. पुरण-दोते खे बाह्मण श्वर प्रोक्तं
वेद् नहीं यह् तुम्हारा कथन क्या -मूल-वेद के धमार् से नही कट
गया । ओर कर गया तो ब्राह्मण ग्रन्थों के, वेद-च होने का मिथ्या
हठ करना क्यों नदीं छोड़ दते ॥. `
७०-ऋग्वेदादि भूमिका में जो ब्राह्मणों के वेदं न होने में दूलेरा
हेत॒ घेद का व्याख्यान होना दिया है 1. उस के खण्डनाथं जं मन्त्र
भाय वेद् मं यौ मन्त्र का.न्याख्यान दिखा दिया गया तो जैसे ध्या-/
ख्यान होने से. ब्राह्मण उद् तदी. केसे-दी ,व्याख्यांत रूप संहिता
अंश का भी वेदःन-होना क्या मान लोगे..? । यदि मान. लोगे तो
प्रणव तथा गाय॒न्नी का. उ्याज्यान होने ले सभी संदिताओं का बेद्
हाना क्या नहीं कटरेगा॥ ; ~ - ,
१-वेद् का व्याख्यान देने से .प्रह्मण शरन्थो के जसे वेद् नहीं
मानते हो, चेसे ही क््या..अष्टाध्यायी का व्याख्यान होने জী লা
. भाष्य के यी व्याकरण नहीं मानेंगे। यदि मानेगे ते ब्राह्मणंग्र॑ंन्थी
के वेद मानने से कसे बच सकागे !॥ ,_ _. ^
५ .७२-यदि महाभाष्यका व्याकरण न. माने ते खा० दयाननद के
शुरू खा० पिरज़ानंन्द जीं के चनाये. ८अंप्ध्योयीमहाभोष्ये हे ल्या-
करणे पुस्त” दस प्रमाण को क्ये भँडा कहगे? | মর
: 7. ७४-क्या अष्टाध्यायी में “तरंग्रापत्यम्,, इस सूल मूत्र का-व्या-
स्थान सये अपत्याधिकार नदी है. : क्यों प्रत्याह्ार सूत्रों का न्याः
स्वानं सव अांध्यायीः नदीं दैः1..: तव वेदिं ब्योख्यान होने मात्र से
ध्याकेरणत्व न-रेहेः ते ; अष्टाध्यायी काः-व्याकरण हना मी' कैसे
सिद्ध कर सकीगे१॥ ८-57-1 स
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