आर्यमत निराकरण प्रश्नावली | Aaryamat Nirakaran Prashnavali

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Aaryamat Nirakaran Prashnavali by पं. भीमसेन शर्मा - Pt. Bhimsen Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छोंग अपने इंस चद्तोव्याघात,दोष. को अब +भी नहीं .मानोगे । और यदि भानोंगे तो. ऋग्वे० भूमिका के .पुराणेतिहास- हेतु पर दर ताल-क्यों नहीं लगाते! 1... 5 ~ ` ६ ६६-जब अथर्व संहिता कांण्ड ११५. । -अनु०.३ मेँ (पुरणं यज्ञुणा सह ) साफ २ लिखा है.कि धचर्वेद्‌ अपने. ब्राह्मण सहित उच्िछष्ट नामक ईश्वर से प्रकट हुआ और .इस मन्त्र का ऐसा.ही अर्थं तुम को भी मानने पड़ा तो. पुरण-दोते खे बाह्मण श्वर प्रोक्तं वेद्‌ नहीं यह्‌ तुम्हारा कथन क्या -मूल-वेद के धमार्‌ से नही कट गया । ओर कर गया तो ब्राह्मण ग्रन्थों के, वेद-च होने का मिथ्या हठ करना क्‍यों नदीं छोड़ दते ॥. ` ७०-ऋग्वेदादि भूमिका में जो ब्राह्मणों के वेदं न होने में दूलेरा हेत॒ घेद का व्याख्यान होना दिया है 1. उस के खण्डनाथं जं मन्त्र भाय वेद्‌ मं यौ मन्त्र का.न्याख्यान दिखा दिया गया तो जैसे ध्या-/ ख्यान होने से. ब्राह्मण उद्‌ तदी. केसे-दी ,व्याख्यांत रूप संहिता अंश का भी वेदःन-होना क्या मान लोगे..? । यदि मान. लोगे तो प्रणव तथा गाय॒न्नी का. उ्याज्यान होने ले सभी संदिताओं का बेद्‌ हाना क्या नहीं कटरेगा॥ ; ~ - , १-वेद्‌ का व्याख्यान देने से .प्रह्मण शरन्थो के जसे वेद्‌ नहीं मानते हो, चेसे ही क्‍्या..अष्टाध्यायी का व्याख्यान होने জী লা . भाष्य के यी व्याकरण नहीं मानेंगे। यदि मानेगे ते ब्राह्मणंग्र॑ंन्थी के वेद मानने से कसे बच सकागे !॥ ,_ _. ^ ५ .७२-यदि महाभाष्यका व्याकरण न. माने ते खा० दयाननद के शुरू खा० पिरज़ानंन्द जीं के चनाये. ८अंप्ध्योयीमहाभोष्ये हे ल्या- करणे पुस्त” दस प्रमाण को क्ये भँडा कहगे? | মর : 7. ७४-क्या अष्टाध्यायी में “तरंग्रापत्यम्‌,, इस सूल मूत्र का-व्या- स्थान सये अपत्याधिकार नदी है. : क्‍यों प्रत्याह्ार सूत्रों का न्याः स्वानं सव अांध्यायीः नदीं दैः1..: तव वेदिं ब्योख्यान होने मात्र से ध्याकेरणत्व न-रेहेः ते ; अष्टाध्यायी काः-व्याकरण हना मी' कैसे सिद्ध कर सकीगे१॥ ८-57-1 स ५




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